१-२] सुधाकर-चन्द्रिका।
- -खरूप
) मैं सब से आदि और एक (अद्वितीय ) जो कर्त्तार (कर्त्ता = परब्रह्म) है उसे स्मरण करता है। जिस ने जीव दिया और संसार को किया ॥ जिस ने पहिले * *ज्योति:- (महादेव) को प्रकाश किया और तिस के लिये कैलास पर्वत को किया। (मुसल्मानाँ में कहावत है कि हिंदुओं का महादेव हमारे लोगों का श्रादम है ) ॥ जिस ने अग्नि, पवन (वायु), जल और खेह (मृत्तिका, धूलि) को किया । ( मुसल्मान लोग अाकाश को तत्त्व नहीं मानते दूसौ लिये यहाँ पर चार-ही तत्त्वों का नाम कहा है)। इन्हौँ चारो तत्त्वों से बहुतदू (बहुत प्रकार के ) रंगों का उरेह (रचना) किया अर्थात् इन्हौँ चारो तत्त्वों से अनेक प्रकार के पदार्थों का रचना किया ॥ जिस ने धरती (धरित्री = पृथ्वी), सरग (वर्ग), और पतार (पताल) को किया। जिस ने बरन बरन (तरह तरह ) का अवतार धारण किया। मत्स्य, कूर्म, वराह, नृसिंह इत्यादि परब्रह्म ईश्वर के अवतार पुराणों में प्रसिद्ध हैं ॥ जिस ने सपत (सप्त) द्वीप और ब्रह्माण्ड को किया। पुराणों में जम्बू द्वीप, शाक, शाल्मल, कुश, क्रौञ्च, गो-मेदक और पुष्कर ये सात द्वीप प्रसिद्ध हैं। जिस ने खण्ड खण्ड चौदह भुवन को किया। पुराणों में भूर्लोक, भुवर्लोक, खर्लोक, महर्लोक, जनलोक, तप- और सत्य- ये सात ऊपर के लोक, और अतल, वितल, सुतल, रसातल, तलातल, महातल और पाताल, ये सात नौचे के लोक, प्रसिद्ध हैं। दोनों सप्तकों के मिलाने से चौदह भुवन होते हैं। कभी कभी वर्ग-लोक, मर्त्य-लोक, और पाताल- लोक ले कर कवि लोग तीन-ही भुवन कहते हैं। जिस ने दिन में सूर्य और रात्रि में ( प्रकाश के लिये) शशि (चन्द्र ) को किया। जिस ने नक्षत्र और तारा-गण को पति को किया ॥ जिस ने सौउ (शोत) धूप (घाम) और छाँह (छाया) को किया। जिस ने मेघ (बादल) और तिस के माँह (मध्य) विद्युत् को किया । ऐसा सब कुछ जिस का किया है दूसरे में काहि (कहाँ भौ) जिस का गुण शोभित नहीं, पहले उस का नाम ले कर (स्मरण कर ) कथा को अउगाहि (ध्यान में डूब कर ) करता हूँ। आगे कौ चौपाइयों में भी सर्वत्र “जिस ने” का योजना करना चाहिए ॥ १ ॥ चउपाई। कौन्दसि सात-उ समुद अपारा। कौन्लेसि मेरु खिखिंद पहारा ॥ कौन्हेंसि नदी नार अउ झरना। कौन्तैसि मगर मच्छ बहु बरना ॥
- नान्हकपन्थियों के मत में ज्योतिःस्वरूप से परब्रह्म लेते हैं।
। फारसी में कानूनचा नाम पुस्तक के २ पृष्ठ में लिखा है कि अग्नि, वायु, जल और पृथ्वी ये हौ चार तत्र -