पृष्ठ:पदुमावति.djvu/५१३

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१८६] सुधाकर-चन्द्रिका। ४०७ चउपाई। आवा सुत्रा बइठ जहँ जोगी। मारग नयन बिग बिगौ ॥ आइ परेवइँ कहा सँदेसू। गोरख मिला मिला उपदेन ॥ कह गुरू मया बहु कीन्हा। कौन्ह अदेस आदि कह दौन्हा ॥ सबद एक होइ कहा अकेला। गुरु जस भिंग पनिग जस चेला ॥ भिंगी ओहि पंखी पइ लेई। एकहि बार गहइ जिउ करइ असि माया। नउ अउतार देइ नइ काया ॥ होइ अमर अस मर कइ जौथा। भवर कवल मिलि कइ मधु पौआ ॥ देई॥ ता कह दोहा। श्रावा= श्राया= आवइ रितू बसंत जब तब मधुकर तब बासु। जोगी जोग जो इमि करइ सिद्धि समापत तासु ॥ १८६ ॥ इति पदुमावति-सुधा-भैंट-खंड ॥ १६ ॥ (श्राययौ)। सुत्रा = शुक = सुग्गा। बहठ = बैठा था = उपविष्ट । जहाँ = यत्र । जोगी= योगी। मारग =मार्ग =राह । नयन = आँख । बिनोग = वियोग- विरह । बिप्रोगौ= वियोगी विरही। श्रादू = एत्य = आ कर। परेवदं = परेवा ने पारावत ने, यहाँ पक्षौ ने। कहा = कहदू (कथयति) का प्रथम-पुरुष में भूत-काल का एक-वचन । सँदेसू = सन्देश = सँदेसा । गोरख = गोरख-नाथ = गोरक्ष-नाथ। मिला = मिल (मिलति) का प्रथम-पुरुष में भूत-काल का एक-वचन । उपदेसू = उपदेश = शिक्षा । गुरू गुरु। मया = माया = मोह = प्यार बहु= बहुत। श्रदेस = आदेश = आज्ञा । श्रादि = मुख्य = अमल = पहली। सबद = शब्द = बात । होइ = होदू = हो कर (भूत्वा)। अकेला एकलः = एकाको। भिंग = भृङ्ग = एक कौट। पनिग = पतङ्ग = फतिंगा। चेला = शिष्य । भिंगो =भृङ्ग। पंखी = पक्ष जिस में हो = फतिंगे । पदू = अपि = निश्चय कर। लेई = लेदू = लेता है (लाति)। बार = वार। गहदू = गहता है (ग्लाति) = पकडता है। जौउ = जीव । देई = देव (ददाति वा दत्ते) = देता है। ता कह = तिस को । करद् = ( करोति) करता है। असि = ऐसौ = एतादृशौ। =कृपा। फनगा- -