पृष्ठ:पदुमावति.djvu/५१६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४२० पदुमावति । २० । बसंत-खंड । [१८७ - - खन = क्षण । सोहाइ = सोहाइ (शोभते ) = सोहता है। धूप = घाम = धाम रविकिरण । छाँहा = छाह = छाया। हंकारी= हँकारद् (हं कारयति वा हक्कारयति ) का भूत-काल = पुकरवाई = बोलाई । जावत = यावन्तः = जितनी। सिंघल-दीप = सिंहल-द्वीप। कद् = कौ। बारी= वालिका = लडकियाँ । श्राजु = अद्य = अाज । बसंत = वसन्त । रितु राजा = तु-राज = ऋतुओं का राजा। होइ = होता है (भवति)। जगत = जगत् = संसार। सब = सर्व। साजा =माज = सज्जित तयारी। सिँगार = ङ्गार । बनाफर = वनस्पति, प्राकृत में वनप्फडिआ। सौस = शौर्ष = शिर। परासहि = पलास के। सैंटुर = सिन्दूर = सेंधूर । बिगसि = विकाश्य = विकशित हो कर = खिल कर। फूल = फुल्ल = पुष्य । फूले = फूले हैं (फुल्लन्ति )। बहु = बहुत। बासा = वास = सुगन्ध । भवर भ्रमर । लुबुधे = लोभे हैं (लोभन्ते )। चहुँ = चारो = चत्वारि। पासा = पास = पार्श्व = ओर । पिअर = पौत = पौला । पात = पत्त्र = पत्ते । दुख = दुःख । झरे= झड पडे = गिर गए = झरद (झरति) के प्रथम-पुरुष में भूत-काल का बहु-वचन। निपाते = निःपत्त्र = बेपत्ते के। पल्लउ = पल्लव = नए पत्ते। उपने = उत्पन्न हुए = उपनदू (उत्पद्यते) के प्रथम-पुरुष में भूत-काल का बहु-वचन । हो = होदू = हो कर। राते = रक्त = लाल || अवधि = मिति = मिती। चल = चलो = चलदू (चलति) का आज्ञा में मध्यम- पुरुष का बहु-वचन । देउ-मढ = देव-मठ = देव-मन्दिर । गाहने = गोपन के लिये रक्षा के लिये = साथ । चहउँ = चाहती है (इच्छामि) ॥ (पद्मावती ने) हे देव, हे देव, (इस शिशिर ऋतु को शीघ्र बिताओ, ऐसा कह कह कर) उस (सो) ऋतु (शिशिर) को बिताई ; श्री-पञ्चमी श्रा कर पूरी हुई, अर्थात् पहुंची। नए (वसन्त ) ऋतु में (बडा) आहाद हुआ; क्षण क्षण पर न घाम और न छाया सोहती है, अर्थात् घाम में जाओ तो घाम कडा मालूम होता है और छाया में श्राओ तो ठंढक लगती है (वसन्त का यही धर्म है)। पद्मावती ने सखिौँ को और सिंहल-द्वीप में जितनी लडकियाँ थौँ सब को बोलवाया। (और कहा कि) श्राज नए ऋतु-राज वसन्त कौ पञ्चमी है संसार में सब (उत्सव को) तयारी हो रही है। (वसन्त सब तुओं का राजा है दूसौ लिये भगवान कृष्ण ने भगवद्गीता में कहा है कि 'ऋतूनां कुसुमाकरः')। वनस्पतियों ने भी नए ङ्गार को किया है; (देखो) पलास के शिर में सेंदुर को दिया है। (वसन्त में पलास की डालियों में लाल लाल फूल उत्पन्न होते हैं जिन्हें लोग टैसू का फूल भी कहते हैं। उन को ऐसौ -