१८७-१८] सुधाकर-चन्द्रिका। ४११ शोभा है जानाँ वनस्पति ने पलाम के शिर में मैंदुर दे कर श्टङ्गार किया हो)। बहुत फूल सुगन्ध से भरे खिल कर फूले हैं ; (उन के ) चारो ओर भ्रमर ा कर लोभे हैं । दुःख-रूप पौले पत्ते झड पडे हैं (वृक्ष सब) बे-पत्ते के हो गए हैं; और सुख-रूप पल्लव लाल लाल हो कर उत्पन्न हो रहे हैं ॥ सो जो मैं ने मन में इच्छा की थी उस को मिती पा कर पूरी हुई, अर्थात् पहुँचौ ; (सब कोई ) साथ साथ देव-मठ में चलो ; (इच्छा पूरी होने से देवता को, मानी हुई) मा (उस ) पूजा को, दिया चाहती हूँ ॥ १८० ॥ चउपाई। फिरी आन रितु-बाजन बाजे । अउ सिँगार बारिन्ह सब साजे ॥ कवल-करी पदुमावति रानौ। होइ मालति जानहुँ बिगसानी ॥ तारा-मँडर पहिरि भल चोला। अउ पहिरइ ससि नखत अमोला ॥ सखी कुमोद सहस दस संगा। सबइ सुगंध चढाए अंगा॥ सब राजा रायन्ह कइ बारी। बरन बरन पहिरहिँ सब सारौ ॥ सबइ सरूप पदुमिनी जाती। पान फूल सैंदुर सब राती ॥ करहिँ कुरेल सुरंग रँगीली। अउ चोथा चंदन सब गौलो दोहा। चहुँ दिसि रही सु-बासना फुलवारी अस फूल । वेइ बसंत सउँ भूलौं गा बसंत हिँ भूल ॥ १८८ ॥ फिरौ = फिरद (स्फुरति) का प्रथम-पुरुष में भूत-काल का एक-वचन । भान = आज्ञा । रितु-बाजन = ऋतु के बाजे जो वसन्त-ऋतु में बजाए जाते हैं, ढोल, डफ इत्यादि । बाजन = वादन वाद्य । बाजे = बज (वाद्यते) का प्रथम-पुरुष में भूत-काल का बहु-वचन । सिँगार = ङ्गार । बारिन्ह = बारी (बालिका) का बहु-वचन । साजे सजद् (सज्जते) का प्रथम-पुरुष में भूत-काल का बहु वचन । कवच-करी= कमल-कली। मालति = मालती = एक लता-पुष्य जो बरसात में फूलती है। जानहुँ = जाने = जानौँ । बिगसानी = विकशित हुई = प्रसन्न हो कर खिल उठी = हँस दिया। तारा-मंडर-
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