४ पदुमावति । १ । यसतुति-खंड । कौन्हसि सौप माँति तेहि भरे। कीन्हेंसि बहुतइ नग निरमरे ॥ कौन्लेसि बन-खंड अउ जरि मूरौ। कौन्लेसि तरिवर तार खजूरी ॥ कौन्हेसि साउज आरन रहही। कीन्हैसि पंखि उडहिँ जहँ चहहौं । कौन्तेसि बरन सेत अउ सामा। कौन्हसि नौद भूख बिसरामा ॥ कौन्हेंसि पान फूल रस भोगू। कौन्हेंसि बहु ओखद बहु रोगू ॥ दोहा। - निमिख न लाग करत ओहि सबहि कौन्ह पल एक । गगन अंतरिख राखा बाजु खंभ बिनु टेक ॥२॥ समुद = समुद्र। खिखिंद = किष्किन्धा, कुखण्ड, जिस के ऊपर दक्षिण ध्रुव है। इसे ज्योतिष में कुमेरु भौ कहते हैं। निरमरे = निर्मल । बनखंड = पृथ्वी में वन-रूपो खण्ड (विभाग)। तरिवर = तरुवर, वृक्षों में बडा। माउज = शवज, मार कर खाने लायक जन्तु । श्रारन = अरण्य, वन। पंखि= पचौ। सेत = श्वेत। मामा = श्याम । श्रोखद = औषधि। अंतरिख अन्तरिक्ष । बाजु = वर्जयित्वा । टेक = आधार ॥ (जिस ईश्वर ने) अपार सातो समुद्र* को किया। मेरु और किष्किन्धा पहाड को किया ॥ नदी, नारा और झरने को किया। (पहाड के तल से वा किसी बड़े ताल से जो निकले उसे नदी, किसौ ग्राम से नल-रूप हो कर बहते बहते किसी नदी में मिले उसे नारा (नल), और पहाड के छेदाँ से धीरे धीरे जो पानी बहता है उसे झरना कहते हैं)। बहु (अनेक) बरन के मगर और मच्छ को किया ॥ सौप को किया तिम में माँती भरे हैं। बहुत प्रकार के निर्मल नग को किया ॥ पृथ्वी में बन-खंड (वन-रूपी विभाग ), जडी, और मूरि को किया। प्रायः जडौ औषधि के और मूरि खाने के काम में आती है। वृक्षों में बडा ताड और खजूर को किया ॥ साउज (खाने लायक जन्तुओं) को किया जो कि अरण्य (वन) में रहते हैं। पक्षियों को किया जो कि जहाँ चाहते हैं तहाँ उडते हैं ॥ श्वेत और श्याम वर्ण को किया। संसार में श्वेत और श्याम-हौ वर्ण मुख्य है, इस लिये इन्ही दोनों में मुख्यता समझ, इन्ही दोनों का ग्रहण किया। भूख, नौंद और विश्राम (पाराम ) को किया ॥ पान, फूल, रस और भोग को किया । अनेक औषधि और अनेक रोग को किया ॥ क्षार, दुग्ध, दधि, त, इक्षु-रस, मद्य, स्वादु जल, इन के सात समुद्र पुराणों में प्रसिद्ध हैं। परन्तु इन से भिन्न ग्रन्थ-कार ने कई एक नाम लिखे हैं जो कि रखयेन को सिंघल-थाना में मिलेंगे। . .
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