पृष्ठ:पदुमावति.djvu/५३२

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४२६ पदुमावति । २० । बसंत-खंड । [१६५ कोइ कह फूल कोई फुलवारौ। भूले सबइ देखि सब बारौ ॥ एक सरूप अउ सैंदुर सारौ। जानहुँ दिशा सकल महि बारौ ॥ मुरुछि परइ जावत जे जोहइ। जानहुँ मिरिग दिनारहिँ मोहइ ॥ दोहा। कोई परा भवर हाइ बास लोन्ह जनु चाँद। कोइ पतंग भा दीपक होइ अध-जर तन काँप ॥ १६५ ॥ प्रहि = यहि = अनेन = दूस । बिधि = विधि = प्रकार = तरह । खेलत = खेलन् = खेलते । सिंघल सिंहल । रानी =राज्ञी। महादेओ महादेव । मढ = मठ = मन्दिर। जादू = जा कर (यात्वा)। तुलानी = तुलित हुई = पहुंची। सकल सब। देश्रोता देवता। देखदू = देखने (दृशि प्रेक्षणे से )। लागे = लगे (लग संलग्ने से )। दिसिटि = दृष्टि । पाप = दोष । भागे = भग गए = नष्ट हो गए। कबिलास = कैलास, यहाँ इन्द्र- लोक। सुनौ = सुनदू (श्टणोति) का भूत-काल में एक-वचन । अपहरी= अमरा। कहँ तद् = कस्मात् = कहाँ तैं। आई = श्रावद (आयाति) का भूत-काल में बहु-वचन । परमेसरी = परमेश्वरी। कोई = कोऽपि । कहदू = कथयति कहता है। ससि = शशि = नखत = नक्षत्र । तराई = तारा-गण। भूले = भूल गए (भ्रम-सञ्चलने से)। सबदू = सर्व = सभी। देखि = दृष्ट्वा = देख कर। बारौ = बालिका = थोडौ उमर को। सरूप = सुरूप सुन्दर-रूप। मैंदुर= सिन्दूर प्रसिद्ध अङ्गराग। सारी=सँवारी हैं (वृ-वरणे से)। जानहु =जाने जाना। दिवा = दीया = दीप । महि = मही बारी = बार ( ज्वलति ) का भूत-काल । मुरुछि = मूर्छित्वा = मूर्छा खा कर = घुमर कर । पर = पतति पड़ता है। जावत = यावन्तः जितने। जे = ये = जो। जोहदू = जोहता है (जेह-यत्ने से )। मिरिग = मृग = हरिण। दिवार = दिवाकर = सूर्य, दिनारहि दिवाकर से, सूर्य को चमक से मृगतषणा से । मोहदू = मुह्यति = मोहता है ॥ परा = परदू (पतति) का भूत-काल में एक-वचन । भवर = भ्रमर = भौंरा । बास = सुगन्ध । लौन्ह = लेदू (लाति) का भूत-काल में एक-वचन। जनु = जाने == जानौं। चाँप दाब (चप धातु से )। पतंग = पतङ्ग = कौट।भा = हुश्रा ( बभूव )। दीपक =दीया। अध-जर = आधा जरा = अर्ध-ज्वलित। तन = तनु = देह। काँप = काँपती है (कम्प ते ) ॥ पृथ्वी। 1 वाम-