४३८ पदुमावति । २० । बसंत-खंड । [२०१ दोहा। 1 परी कया भुइँ रोपई कहाँ र जिउ बलि भौउ को उठाइ बइसारई बाजु पिरीतम जौउ ॥२०१॥ वाह अपना। जीव । तन = = प्यारा। कौन्ह = करदू (करोति) का भूत-काल । पयान = प्रयाण = यात्रा। सबन्ह = सब (सर्व) का बहु-वचन । हाँका = हाँ कद (अकयति, अक कुटिलायां गतौ से णिच् ) का भूत-काल । परबत = पर्वत = पहाड। छाडि = छोड कर ( सञ्छुड्य)। सिंघल = सिंहल । गढ= गाढ दुर्ग= किला । ताका = ताकद (तर्कयति ) का भूत-काल । सबद् = सभी। देशाता = देवता। बलौ = प्रवल । हतित्रारिन = हत्या-कारिणौ = हत्या करनेहारी। हतिया= हत्या = पाप। लेदू = ले कर (ला धातु से)। चली = चलद (चलति) का भूत-काल में स्त्रीलिङ्ग का एक-वचन । को कौन = कः। अस = ऐसा = एतादृश । हित = हित = हितेषी। मुए = मरे का। गह = गहे (ग्रहीयात् ) = पकडे। बाहौं: बाँह। जउँ= यदि = जाँ। पद अपि = निश्चय। जिउ = जीव। श्रापुन तनु = देह । जउ लहि = जब लग = जब तक । बिनु = विना। जिण निरापन =जो अपना नहीं = बेगाना = पराया। होई = होता है (भवति)। भादू = । भाई = भ्राता । बंधु = बन्धु । अउ = अपि च = और। मौत = मित्र । पिपारा घडी = एक घडी= एक घटी। राखदू = रखने को। पारा = पार = समर्थ = शक्य । पौंड = पिण्ड = देह । छार चार = भस्म । करि = कृत्वा = कर के । कूरा - कूट = ढेर। मिलावद = मिलाता है (मेलयति)। पूरा = पूर्ण = पक्का। अब = दूदानीम् अधुना मर = मुर्दा = मृतक । (बभूव)। उठि (उत्थाय)। बदठि =बैठ कर (उपविश्य ) । गरब = गर्व = अभिमान। सउँ= माँ = से। गाजा = गाजे गरजे = गाज (गर्जति) से ।। परी-परदू (पतति) का भूत काल में स्त्रीलिङ्ग का एक-वचन । कया = काय = देह । भुइँ = भूमि में। रोअदू = रोती है (रोदिति)। बलि = वलि राजा, जिस के छलने के लिये भगवान् विष्णु का वामनावतार हुआ है। पुराणों में प्रसिद्ध कथा है। भौउ = भौम = युधिष्ठिर के दूसरे भाई जो कि महाबली थे। उठाइ = उठा कर। बदूसार = बैठावे ( उपवेशयेत् ) । बाजु = बरजे रोके (वर्जयेत् )। पिरीतम = प्रियतम = सब से प्यारा ॥ 1 भा=भया=जत्रा = उठ कर
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