४६० पदुमावति । २१ । राजा-रतनसेन-सती-खंड । [२११ चउपाई। हनुवंत बौर लंक जइँ जारी। परबत उह-इ अहा रखवारी ॥ बइठ तहाँ हाइ लंका ताका। छठएँ मास देइ उठि हाँका ॥ तेहि कइ आगि उह-उ पुनि जरा। लंका छाडि पलंका परा॥ जाइ तहाँ वे कहा सँदेख। पारबती अउ जहाँ महेसू ॥ जोगी आहि बिगी कोई। तुम्हरे-इ मँडफ आगि तेइ बोई ॥ जरे लँगूर सु-राते जहाँ। निकसि जो भाग भण्उँ कर-मूहाँ ॥ तेहि बजरागि जरइ हउँ लागा। बजर-अंग जरतहि उठि भागा ॥ दोहा। राओन-लंका हउँ डही वेई मोहिँ डाढन आइ । घन-इ पहार होत हइ रावट को राखइ गहि पाइ॥२११॥ इति राजा-रतन-सेन-सती-खंड ॥ २१॥ हनुक्त = हनुमान् = हनुमंत। बौर = वौर = बहादुर । लंक = लङ्का = रावण-राज- धानौ। जदूं = येन = जिस ने। जारी=जारद (ज्वालयति) का भूत-काल, स्त्रीलिङ्ग प्रथम-पुरुष का एक-वचन । परबत = पर्वत पहाड । उह-दू = वही = उमौ। अहा = था = श्रासीत् । रखवारी = रखवाली = रचापाल = रक्षा के लिये नियुक्त। बदठ = बैठा बैठा हुआ = (उपविष्ट)। होइ = हो कर (भूत्वा )। ताका = ताक = ताकद (तर्कयति) देखा करता है। छठएँ = षष्ठे = छठवें । मास = महौना । देह = (दत्ते) देता है। उठि उठ कर (उत्थाय)। हाँका = हाँक = हुङ्कार । कई = की। श्रागि = अग्नि । उह-उ= वह-भौ। पुनि = पुनः = फिर। जरा = जलने लगा। छाडि = छोड कर (कुर वा छुट छेदने से )। पलंका = पर्यवः = पलँग शय्या । परा = पर (पतति) का भूत-काल, पुंलिङ्ग प्रथम-पुरुष का एक-वचन । जादू =जा कर (श्रायाय )। वेई = उन्हों ने। कहा = कहद् (कथयति) का भूत-काल, पुंलिङ्ग प्रथम-पुरुष का एक-वचन। सँदेसू = सन्देश सँदेसा। पारबती पार्वतौ = पर्वत हिमालय की लडकी । जहाँ = - यत्र । महेसू महेश = महादेव । जोगौ = योगी। आहि = है (अस्ति)। बिश्रोगौ = वियोगी = विरही।
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