पृष्ठ:पदुमावति.djvu/५६८

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४६२ पदुमावति । २२ । पारबती-महेस-खंड। [२१२ अथ पारबती-महेस-खंड ॥२२॥ SCENE चउपाई। ततखन पहुँचे आइ महेतू । बाहन बइल कुसटि करि भेस्तू ॥ काँथरि कया हडावरि बाँधे। मूंड माल अउ हतिभा काँधे ॥ सेस-नाग जो कंठइ माला। तनु बिभूति हसतो कर छाला ॥ पहुँचौ रुदर-कवल कइ गटा। ससि माँथइ अउ सुरसरि जटा ॥ चवर घंट अउ डवरू हाथा। गउरी पारबती धनि साथा ॥ अउ हनुवंत बौर सँग अावा। धरे भेस जनु बंदर-छावा ॥ अउतहि कहेन्दि न लावहु आगी। ता करि सपत जरहु जेहि लागी ॥ दोहा। कइ तप करइ न पारहु कइ रे नसाण्हु जोगु। जिअत जीउ कस काढहु कहहु सो मोहिँ बिओगु ॥ २१२ ॥ ततखन = तत्क्षणे = तिसो क्षण में। पहुँचे = पहुँचद् (प्रभुत्यति से, प्रा० पहुच्चदू) का भूत-काल, आदरार्थ पुंलिङ्ग प्रथम-पुरुष का बहु-वचन । श्राइ श्री कर = एत्य । महेसू -महेश = महादेव । बाहन = वाहन = सवारौ। बदल = बैल = बलौवर्द। कुमटि = कुष्टी = कोढी। करि= कर के = कृत्वा । भेसू = वेष = सूरत। काँथरि = कन्था = गुदरी ।