पृष्ठ:पदुमावति.djvu/५७१

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२१३] सुधाकर-चन्द्रिका। ४६५

नाम

नाव । मढ-मठ कहमि = कहा = कहद् (कथयति) का भूत-काल । बातहि = बातों में = वातासु । बिरमावा बेलम्हायाः विलम्बित किया = भुलवाया। हतिश्रा = हत्या । डर=भय (दर)। श्रावा = श्रावद (आयाति) का भूत-काल । जरदू जलने। देहु = देशो। दुख = दुःख । जरउ = जलता हूं (ज्वलामि)। अपारा = अपार = बेहद्द । निमितर निस्तार = निस्तरण। परउँ = परदू (पतति) का उत्तम-पुरुष का एक-वचन । बारा = वार। जदूस = जैसे = यथा । भरथरी भर्तृहरि । लाग = लिये। पिङ्गला -दक्षिण-खर- नाडौ, वा पिङ्गला = एक रानौ। सिंघल्ला = सिंहल । म = मैं । पुनि = पुनः = फिर । तजा =तजदू (त्यजति) का भूत-काल, पुंलिङ्ग-उत्तम-पुरुष का एक-वचन । राज राज्य । भोगू = भोग = विलास। सुनि - सुन कर (श्रुवा) । नाउँ लौन्ह = लेदू (लाति) का भूत-काल, पुंलिङ्ग-उत्तम-पुरुष का एक-वचन । तप-तपः = तपस्या । जोगू = योग। मन्दिर। सेप्रउँ = सेया = सेव (सेवते) का भूत-काल, पुंलिङ्ग-उत्तम-पुरुष का एक-वचन । श्रादू = श्रा कर = एत्य। निरासा = निराश ना उम्मेद । गद् = गई (अगात् )। पूजि = पूज कर (सम्पूज्य ) । पूजि : पूजी पूरी हुई = पूजद (पूर्यते ) का भूत-काल, स्त्रीलिङ्ग-प्रथम-पुरुष का एक-वचन । डाढे जलाने । दाधा दग्ध किया = दाहदू (दाहयति) का भूत-काल। श्राधा = अर्ध । निकमि = निकल कर (निःकाश्य ) । रहा = रहद् (रहति) का भूत-काल । अध-जर- अर्धज्वलित । बिलंब = विलम्ब = देरौ । लावा=लाव = लाव = लगाता है। पावा = पाव = पावद = पाता है ॥ प्रतना= इतना = एतावती। बोलि = बोली = वाक्य । उठी = उठद् (उत्तिष्ठते) का भूत-काल, स्त्रीलिङ्ग प्रथम-पुरुष का एक-वचन । बिरह = विरह = वियोग-दुःख । कद = कौ। श्रागि = अग्नि = श्राग । जउ = जौँ = यदि । महेस = महेश = महादेव । बुझावत = बुझाते। सकल = सब। जगत् = संसार । हत= इततौ = मार डालती (इन् हिंसायाम् से)। लागि = लग कर (लगित्वा) ॥ (महादेव की बात सुन कर राजा ने ) कहा कि कौन (तुम ) मुझे बातों में अटकाते हो। तुझे हत्या को डर नहीं होती, मैं अपार दुःख से जल्न रहा हूँ (सो मुझे अब शीघ्र ) जलने दो; (जिस में जल कर) एक बार ही निस्तार (स्थान) में पडू, अर्थात् जल कर शौच इस बखेडे से अलग हो जाऊँ। (अच्छा मेरी कहानी सुनो) जैसे भर्तृहरि को पिङ्गला दक्षिणनाडौ वा पिङ्गला रानौ लग गई (उसी प्रकार) श्रध-जरा = श्राधा जला= जगत- . 59