पृष्ठ:पदुमावति.djvu/५९६

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४७८ पदुमावति । २२ । पारबती-महेस-संड । [२२ २२० भेदी कोइ जाइ ओहि घाँटी। जउँ लहि भेद चढइ होइ चाँटी ॥ गढ तर एक कुंड अउगाहा। तेहि मँह पंथ कहउँ तोहि पाँहा ॥ चोर पइठि जस सँधि सँवारौ। जुआ पइँत जिउ लाउ जुत्रारौ ॥ दोहा। गढ=गाढ= =वक्र - - तच = जस मरजिया समुंद धसइ हाथ आउ तब सौपु। ढूंढि लेहु वह सरग दुअारौ अउ चद् सिंघल-दौपु ॥ २२० ॥ -दुर्ग = किला। तस = तथा = तैसा। बाँक कठिन = बांका। जदूस = यथा = जैसा । काया = काय = शरीर । परखि = परीक्ष्य = परीक्षा कर। देख = पश्य = देखो। यह = अयम् । श्रोहि कदू = उस की। छाया = प्रतिबिम्ब परिछाहौं । पाइअप्राप्यते = पाया जाता है। नाहि = नहीं: = न हि । जूझि= युद्ध। हठ = = हठेन जबर्दस्ती। कौन्हे = करने से (डुकृञ् करणे से )। जेद् = जिन्हों ने = यैः। पावा = पाया = प्राप्नोत् । तद् = तीन्हाँ ने तैः। श्रापुहि = अपने से खयम् = श्रात्मतः । चौन्हे = चौन्हने से = परिचय करने से । नउ = नव = नौ। पउरी = प्रतोलौ = पुरदारी = डेवढी। मंझिारा = मध्य में। अउ अपि च =और । तह तहाँ। फिरहि = भ्रमन्ति -घूमते हैं। पाँच = पञ्च। कोटवारा = कोटपाल = कोतवाल। दसउँ= दशम = दसवाँ । दुधार = द्वार = दरवाजा। गुपुत= गुप्त = छिपौ। प्रक = एक । नाँको नाँका नासिका (नाक) के ऐसा नुखोला स्थान । अगम = जाने योग्य नहीं = दुर्गम । चढाउ (उच्चालन)। बाट=पथ = राह । सुठि = सुष्छु अच्छी- बाँकी = वक्र = टेढी। भेदी = ज्ञाता = जानकार। कोदू = कोऽपि जाता है= याति। ओहि = उस । घाटी घाँटी = घट्ट = घाट का स्त्रीलिङ्ग । जउँ= यदि = जो। लहि = लब्धा = पा कर। चढदू = चढे (उच्चलेत् )। होइ = भूत्वा = हो कर। चाँटौ = चौंटौ = पिपीलिका। तर = तले नौचे। कुंड = कुण्ड। अउगाहा= अवगाढ अगाध । मह =मध्ये मैं। पंथ = पन्थाः राह । कहउँ = कथयामि कहता हूँ। तोहि पाहा तुझ से । पदूठि = प्रविण्य = पैठ कर । जस = यथा = जैसे । मैंधि = सन्धि = भेद । सवारी=संवारद् (संमार्जयति ) का प्रथम-पुरुष, भूत-काल, स्त्रीलिङ्ग का एक-वचन । जुत्रा = द्यूत = जूश । पइंत = परितः = सर्वभावतः = सब तरह से। जिउ जीव । लाउ = लगाता है = लगावद् । जुत्रारौ = द्यूती = जुआ खेलने-वाला = द्यूतकारौ ॥ नोकण =चढाव -तरह अत्यन्त। -कोई। जादू