पृष्ठ:पदुमावति.djvu/६१२

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४४ पदुमावति । २३ । राजा-गढ-छका-खंड । [२२८ प्रकार अधिक। लाए लगाए। जनउँ =जानउँ =जाने जानता हूँ। सरग = स्वर्ग। बात = वार्ता। दऊँ = क्या जाने। काहा = किम् = क्या । काहु किसी ने। श्रादू =श्रा कर ( एत्य )। कही = कहदू (कथयति) का भूत-काल, प्रथम-पुरुष, स्त्रीलिङ्ग का एक-वचन । फिरि=फिर कर लौट कर। चाहा = चाह = इच्छा। पाँख

पक्ष= पर। कया

काय = शरीर। पउन = पवन = हवा । पाया = पाद = पैर। कहि किस । बिधि

उपाय। मिलउँ = मिलू (मिलेयम् )। होउ = होयँ (भवेयम्)। छाया

आश्रित । सर्वरि = संस्मृत्य = स्मरण कर। रकत =रक । नदूनहि = नयनों में। भरि भर कर (भृत्वा)। चूना = चुअदू (च्यवति) का प्रथम-पुरुष, भूत-काल, पुंलिङ्ग का एक-वचन । रोइ = रो कर (रुदित्वा)। हकारेंसि = पुकारा ( हमकारयत्) । माँझी मध्यौ = मध्यस्थ । सूत्रा = शुक = सुग्गा । परहिँ = पडती हैं (पतन्ति ) । आँसु श्रश्रु आँस । कद् = की। टूटौ = टूट कर (त्रुटित्वा)। अबहुँ अब भी (दूदानौं हि)। राती ललित = लाल । बौर-बहूटी = वीर-वधू = दुन्द्र-वधू । उहद् = वहौ = स एव । लिखि = लिख कर (लिखित्वा)। दोन्हौ = देव (दत्ते) का भूत-काल, प्रथम-पुरुष, स्त्रीलिङ्ग का एक-वचन । पाती = पत्री = चौठी। सुअ = (शुकेन) = सुग्गेने। लीन्ह - लिया (ला दाने से)। चाँच : = चञ्चु । भद् = भई (बभूव ) । बाँधा = बाँधद् (वध्नाति) का प्रथम-पुरुष, भूत-काल, पुंलिङ्ग का एक-वचन । कंठ = कण्ठ = गला । (पतति ) का प्रथम-पुरुष, भूत-काल, पुंलिङ्ग का एक-वचन। जरि =जर कर (जरित्वा )। काँठा कंठा शुक के गले को धारौ। बिरह = विरह = वियोग । क = का। जरा = जरा हुआ = जला हुआ । जादू = जाय (यात् )। कह = कुत्र कहाँ । नाठा = नष्ट ॥ मसि = मषी = स्याहौ। नना = नयन । लिखनौ =लेखनी = कलम । बरुनि बरोनौ = वारणौ ( १ ० ६ दोहे को टोका देखो)। रोइ रोइ = रो रो कर । लिखा लिखद (लिखति) का प्रथम-पुरुष, भूत-काल, पुंलिङ्ग का एक-वचन । कहने के न योग्य । श्राखर = अक्षर । दहहिँ = दहद (दहति ) का बहु-वचन । गहदु = ( ग्टहाति) पकडता है। दोन्ह = दिया (अदात् )। परेवा = पारावत = यहाँ पचौ शुक। हत्व राजा (रत्न-सेन ) ने कहा कि, दूत बहुत दिन लगाए, जो गए सो फिर लौट कर न पाए। नहीं जानता कि (क्या हुआ), क्या जाने स्वर्ग में बात है क्या, (क्याँकि ) किमो ने श्रा कर फिर (अपनी) इच्छा न कही। (मेरौ) शरीर में न पर, न प्राण । पडा = पडदू कत्थ = अकथ्य- = हाथ= हस्त ॥