पृष्ठ:पदुमावति.djvu/६१४

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पदुमावति । २३ । राजा-गउ-छका-खंड । [२२६ पुनि = पुनः = फिर । सवरादू = स्मरण करा कर (संस्मार्य)। श्रम = एतादृश = ऐसा । दूजे दूसरौ = द्वितीय । बलि = बलिदान । दोन्ह = दिया (अदात् )। देश्रोतन्ह = देवता का बड़-वचन । पूजे = पूजद (पूजयति) का प्रथम-पुरुष, भूत-काल, पुंलिङ्ग का बहु-वचन । अब हूँ = दूदानौं हि=अब भी। तसद् = तथैव = तैसा हो। लागा = लगा है (लमः) । कब लगि

कब तक = कियत् कालम् । कया = काय देह । सून

शून्य = खाली। मढ= मठ देव-मन्दिर । जागा = जागे जाग (जागर्ति) का सम्भावना में, प्रथम-पुरुष, पुंलिङ्ग का एक-वचन। भलेहि = भले ही = अच्छी तरह से वरम् । ईस = ईश = महादेव। तुम्ह-हूँ तुम्ह भौ = त्वमपि। दोन्हा = दोन्ह । जहँ = यत्र = जहाँ। तुम्ह - = तुम्हें। भाउ = भाया = अच्छा मालम हुश्रा (भा दीप्तौ से)। तहाँ तत्र । कीन्हा = कीन्ह = किया (अकरोत् )। जउँ= यदि = जो। मया = माया = मोह =कृपा। पगु = प्रग = पैर। ढारा = धारा = धारण किया। दिमिटि = दृष्टि। देखा = देखा कर (प्रदी ) । बान- बिष -विषवाण = विष से बुझाया हुआ वाण । मारा = मारह (मारयति) का प्रथम-पुरुष भूत-काल, पुंलिङ्ग, एक-वचन । जा कर = जिस का। श्रासा = आशा = दिशा, वा उम्मीद। श्रासा-मुखी = दिशा वा उम्मेद की तरफ मुँह रखने-वाला। दुख = दुःख । मह = मध्ये = मैं। अदूस = एतादृश = ऐसा । मारद = मारता है (मारयति)। दुखौ = दुःखी- दुखित्रा । आँख । भिखारि = भिखारी = भिक्षुक। मानहिँ = मानद (मन्यते) का बहु-वचन। सौखा = शिक्षा = उपदेश । अगुमन भागे। दउरि = दौड कर ( मंद्रुत्य वा द्रुत्वा)। लौन्ह = लिया (ला दाने से)। पद = अपि = निश्चय । भीखाः भिक्षा = भौख ॥ बिध गई = विद्ध हो गई। निकसहि = ( निष्कशति) निकम का बहु- वचन । वैदू = वे। बान = वाण । हिअ = हृदय में (हृदये)। लिखे = (लिखति) लिखद् का मध्यम पुरुष, पुंलिङ्ग, भूत-काल का बहु-वचन । ते = वे । सुठि = सुष्टु = अच्छी तरह से। घटहिँ घटाते है । परान = प्राण || ( रान-सेन ने कहा कि ) और पहले हमारी ओर से बहुत खुशामद कर, हे पारावत (शुक पक्षी) मुख से (चौठी को) बात कहना। फिर सुधि दिला कर ऐसा कहना कि, जिस ने देवताओं को पूजा और वलि को दिया, वह अब तक (अपने को) वलि देने के लिये उसी तरह से लगा हुआ है, अर्थात् तैयार है, (मो) शून्य (प्राण के बिना) देह कब तक मठ में जागती रहे (अन्त में सो गई)। तुम ने भी नदून =नयन ='

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बेधि गद 5