पृष्ठ:पदुमावति.djvu/६१५

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२२६ - २३०] सुधाकर-चन्द्रिका। ४६७ अच्छी तरह से महादेव को बलि दौ, जहाँ तुम्हें भाया तहाँ तुम ने बलि की, अर्थात् बलिदान दिया। यद्यपि तुम ने अनुग्रह कर (मेरे यहाँ ) पैर को धारण किया, अर्थात् आप श्राई, (तथापि) दृष्टि को देखा कर विष-वाण मार दिया । सो जो जिम का ऐसा आशामुखी हो, उस दुखिश्रा को वह ऐसे दुःख मैं नहीं मारता। (क्या किया जाय) भिख-मंगो आँखें सौख नहीं मानतौं, आगे-हो से दौड कर भौख को ले लिया ॥ श्राखों से आँखें बिध गई, वे (तुम्हारे विष-)वाण नहीं निकसते, हृदय में जो तुम ने अक्षर लिखे वे अच्छी तरह से प्राण को कम कर रहे हैं। (हृदय के अक्षर के लिये २०० दोहे को देखो) ॥ २२६ ॥ चउपाई। तेइ बिख-बान लिखउँ कह ताई। रकत जो चुत्रा भौज दुनिबाई ॥ जानु सो गारइ रकत पसेज। सुखो न जान दुखो कर भेज ॥ जेहि न पौर तेहि का करि चौता। प्रौतम निठुर होइ अस नौता ॥ का सउँ कहउँ बिरह कइ भाखा । जा सउँ कहउँ होइ जरि राखा ॥ बिरह आगि तन जर बर जरइ। नइन नौर सायर सब भरइ ॥ पाती लिखौ सवरि तुम्ह नावाँ । रकत लिखे आखर भए स्यावाँ ॥ अाखर जरहिँ न कोई छूया। तब दुख देखि चला लेइ सूत्रा ॥ दोहा। अब सुठि मरउँ छूछि गइ पाती पेम पिबारे हाथ । भैंटि होति दुख रोइ सुनावत जीउ जात जउँ साथ ॥ २३० ॥ तद् = तिम । बिख-बान विष-वाण विष के वाण । लिखउँ = लिखू (लिखानि )। कह ताई = कह ताई = कहाँ तक। रकत =रत खून । जो = यत् चुअदू (च्यवति) का प्रथम-पुरुष, पुंलिङ्ग, भूत-काल का एक-वचन । भौंज = भीगा अभिषिक्त हुआ। दुनिबाई = दुनिश्रा । जानु =जाने = जानौँ । सो = वह = सः । गार = (गारयति) गारता है। पसेऊ = प्रखेद = पसौना। सुखी = सुखिपा। जान = जानइ (जानाति) = जानता है। दुखौ = दुःखी = दुखिश्रा। कर= का । भेऊ =भेद । जो। चुश्रा 63