२३२] सुधाकर-चन्द्रिका। ५०१ चउपाइ। ततखन हीरामनि गा आई। मरत पिास छाँह जनु पाई ॥ भल तुम्ह सुश्रा कौन्ह हइ फेरा। गाढ न जानउँ प्रौतम केरा॥ बाटहि जानहुँ बिखम पहारा। हिरदइ मिला न होइ निनारा ॥ मरम पानि कर जान पिपासा। जो जल मँह ता कह का आसा ॥ का रानौ यह पूँछह बाता। जनि कोइ होइ पेम कर राता ॥ तुम्हरे दरसन लागि बिगी। अहा सो महादेवो मढ जोगी ॥ तुम्ह बसंत लेइ तहाँ सिधाई। देओं पूजि पुनि ओ पहँ आई ॥ दोहा। ततखन = तत्क्षणे गा=गया दिसिटि बान तस मारेहु घाइ रहा तेहि ठाउँ। दोसरि बार न बोला लेइ पदुमावति नाउँ ॥ २३२ ॥ उसी समय । होरामनि = हीरामणि (शुक) । (अगात् )। श्राई = त्रा कर (एत्य)। मरत= मरता (मरन् )। पित्रास = पिपासा प्यास । छाँह = छाया । जनु = जाने = जानौँ। पाई = पावद् (प्राप्नोति) का प्रथम-पुरुष, भूत-काल, स्त्रीलिङ्ग का एक-वचन । भल = वर = भला। सुश्रा=क सुग्गा। कौन्ह = किया (अकरोत् )। हद् = है (अस्ति)। फेरा = स्फुरण = पुनरागमन । गाढ = कठिन = कष्ट । जानेउँ = जानी (अजानम् ) । प्रौतम = प्रियतम । केरा = का। बाटहि : बाट में=राह में। जानहुँ जाने =जानौँ। बिखम = विषम = नौचा ऊँचा। पहारा = पहाड = = प्रहार = पर्वत । हिरदद् = हृदये = हृदय में। मिला = मिला हुआ होदू = होता है (भवति)। निनारा = निरालय = अलग = निर्गत। मरम = मर्म = भेद। पानि = पानीय जान = जानदू (जानाति) जानता है। पित्रासा= प्यासा पिपासु । जो= यः । जल = पानी। मह = मध्ये = में। ता कह = तिस को । का = किम् = क्या। श्रामा = आशा = उम्मीद। रानौ = राजौ= पद्मावती। यह = इदम् । पूँछड़ = पूछती हो (पृच्छथ)। बाता = बार्ता = बात । जनि = मत =न । कोद कोऽपि = कोई । होदू = होय = होवे (भवेत् )। पेम = प्रेम । कर = का। राता = रक = मिलित। पानी। कुत्रा
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