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पृष्ठ:पदुमावति.djvu/६३५

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२३८-२३६] सुधाकर-चन्द्रिका। ५१७ सर-प्रेमावती- दूस नाम से मुझे यह कथा नहीं मिली है। बहुत लोग कहते हैं कि प्रेमावती मोहनी का नामान्तर है। समुद्र मथने के समय जब अमृत निकला है तब उस के लिये देवता और राक्षस लडने लगे। इस पर भगवान् मोहनी स्त्री का रूप बन कर पाए । सब लोग उस पर मोहित हो गए, अमृत का घट उसी को दे दिया। मोहनी ने छल से सुरा राक्षसों में और अमृत देवताओं में बांट दिया। एक दिन महादेव ने भगवान् से कहा कि मैं आप का मोहनी रूप देखा चाहता हूँ। बहुत कहने पर भगवान् विष्णु ने मोहनी रूप देखाया। महादेव मोहित हो उस के पीछे पौछे दौडने लगे। अन्त में मोहनौ अन्तर्धान हो गई। दूम पर व्याकुल हो उम्र के लिये महादेव जो मरने के लिये तयार हुए। पुराणों में यह कथा मिलती है। मैं नहीं कह सकता कि प्रेमावती से मोहनौ-ही है वा दूसरौ। संभव है कि प्रेमावती कोई राज-कन्या हो और सुर देवता रूप कोई राजा रहा हो । अनिरुद्ध-ऊषा । शोणित-पुर के राजा बाणासर को कन्या ऊषा थी। एक दिन दूस ने स्वप्न में अनिरुद्ध को देखा। उस के व्याकुल होने पर उस को सखौ चित्र-लेखा ने सब के चित्र खौच खौंच कर उसे देखाया। अन्त में अनिरुद्ध के चित्र को उस ने पहचाना और कहा कि यही चित-चोर रात को खप्न में मेरे पास आया था। चित्र-लेखा द्वारिका से सोते हुए अनिरुद्ध को उठा लाई और ऊषा से मिलाई । खबर लगने पर वाणासुर ने अनिरुद्ध को कैद किया। फिर पीछे कृष्ण ने यदुवंशियों के साथ श्रा कर, बाणासुर से लड कर, अनिरुद्ध को कुडाया । यह कथा श्रीमद्भागवत के दशमस्कन्ध में विस्तार के साथ लिखी है ॥ २३८ ॥ चउपाइ। हउँ पुनि अहउँ अइसि तोहि रातो। आधौ भैंटि पिरौतम पाती॥ तोहि जउँ प्रौति निबाहइ आँटा। भवर न देखु केत मँह काँटा ॥ होहु पतंग अधर गहि दौआ। लेहु समुंद धुंसि होइ मरजौबा ॥ राति रंग जिमि दीपक बाती। नइन लाउ होइ सौप सेवाती। चातक होइ पुकारु पिपासा। पौउ न पानि सेवाति क आसा ॥ सारस होहु बिछुरि जस जोरौ। रइनि होहु जल चकइ चकोरी ॥ होहु चकोर दिसिटि ससि पाँहा। अउ रबि होहु कवल ओहि माँहा ॥