पदुमावति । १ । असतुति-खड [१२ चउपाई। चारि मौत जो मुहमद ठाऊँ। चहूँ क दुहुँ जग निरमर नाऊँ अबा बकर सिद्दीक सयाने। पहिलइ सिदिक दोन वेइ आने ॥ पुनि सो उमर खिताब सोहाए। भा जग अदल दौन जो आए ॥ पुनि उसमान पंडित बड गुनौ। लिखा पुरान जो आयत सुनी ॥ चउथइ अली सिंघ बरिारू। चढइ तो काँपइ सरग पतारू ॥ चारिउ एक मतइ प्रक बाता। एक पंथ अउ बचन एक जो सुनावहिँ साँचा। भा परवान दुहूँ जग बाँचा ॥ एक सघाता दोहा। जो पुरान बिधि पठवा सोई पढत गरंथ। अउरु जो भूले आवतहि नहि सुनि लागहिँ पंथ ॥१२॥ मौत = मित्र। मतदू = मते मत में । संघात = संघात साथ । परवान = प्रमाण ॥ मुहम्मद के स्थान में जो चारो मित्र थे, उन चारों का दोनों जगत में निर्मल नाम है ॥ पहले का नाम अबा बकर सिद्दीक (अब बक्र सिद्दीक) था, वह बडे सयाने (चतुरे) थे, उन्हों ने (संसार में) सिद्दीक दीन (मत्य धर्म) को आने, ले आये, अर्थात् प्रगट किया ॥ फिर दूसरे जो थे, सो उमर नाम के थे, जिन को कि (खलीफा कौ) पदवी शोभित थौ । जो कि (जब मुहम्मद के) धर्म में आए, तब जगत में न्याय हुआ, अर्थात जगत न्याय से छाय गया । फिर उन के अनन्तर, तीसरे उसमान नाम के थे, जो कि बड़े पण्डित और गुणी थे, जिन्हों ने कि उस पुरान (कोरान) को लिखा, जैसा कि आयत (मन्त्रों) को (ईश्वर से) सुना ॥ चौथे अलौ नाम के सिंह के ऐसे बलिष्ठ थे। जब वे लडाई करने को चढें, तो स्वर्ग और पाताल कँपने लगे ॥ चारो मित्र एक मत, एक बात, एक राह और एक साथ में रहते थे। चारो जो एक सत्य वचन को सुनाते हैं, वह (सर्वत्र ) प्रमाण की गई, और दोनों जगत में बाँचौ गई, अर्थात आदर से पढौ गई । अथवा उस वचन का (जिम को) प्रमाण हुआ, वह दोनों जग से बच गया ॥ ब्रह्मा ने जिस पुराण (कोरान) को भेज दिया था, उसी ग्रन्थ को वे लोग पढते हैं। और लोग (ईश्वर के यहाँ से) श्रावने में जो (ईश्वर को राह को) भूल गये हैं, मो तिस ग्रन्थ को सुन कर पंथ (ईश्वर की राह ) में लग जाते हैं ॥१२॥
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