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पृष्ठ:पदुमावति.djvu/६४०

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५२२ पदुमावति । २३ । राजा-गढ-का-खंड । [२४१ गुरू सबद दुइ सरवन मेला। गुरू बोलाउ बेगि चलु चेला ॥ तोहि अलि कौन्ह आपु भा केवा। हउँ पठवा कइ बीच परेवा ॥ पउन साँस तो सउँ मन लाई। जोवइ मारग दिसिटि बिछाई ॥ जस तुम्ह कया कौन्ह अगि-डाहू। सो सब गुरु कहँ भाउ अगाहू ॥ तब उडंत-छाला लिखि दीन्हा। बेगि आउ चाहउँ सिधि कौन्हा ॥ दोहा। आवहु स्याएँ सुलक्वन जीउ बसइ तुम्ह नाउँ। नइनहिँ भौतर पंथ हइ हिरदहि भीतर ठाउँ ॥ २४१ ॥ सुत्रा =क= सुग्गा । अहा = था (श्रामौत् )। जेहि जिस । श्रास = आशा। मो मो = वह = सः । पावा = पावर (प्राप्नोति) का प्रथम-पुरुष, भूत-काल, पुंलिङ्ग का एक वचन। बहरी= फिरी= लौटौ (न्यवर्त्ति = व्यवर्त्ति)। सांस श्वास। पेट = पेटिका। जिउ = जीव। श्रावा = श्रावद (आयाति) का प्रथम-पुरुष, भूत-काल, पुंलिङ्ग का एक-वचन । देखेसि = देखा (अपश्यत् )। जागि: = जाग कर (जाग्रत्वा)। सुत्र = शक ने। सिर = शिर । नावा = नावद् (नामयति) का प्रथम-पुरुष, भूत-काल, पुंलिङ्ग का एक-वचन । पाति = पातौ = पत्तौ = चिट्ठी। दोन्ह = दिया (प्रदात्) । मुह = मुंह = मुख। बचन = वचन = बात। सुनावा सुनावद (श्रावयति) का प्रथम-पुरुष, भूत काल, पुंलिङ्ग का एक-वचन । गुरू = गुरु | सबद = शब्द । दुद् = दो= दयम् । सरवन = श्रवण = कान । मेला = मेल (मेल यति) का प्रथम-पुरुष, भूत-काल, पुंलिङ्ग का एक-वचन । बोलाउ= बुलाता है (म्हलयति)। बेगि = वेग = शौघ्र । चलुचल (चल)। चेला शिष्य । तोहि = तुझे। अलि = भ्रमर = भौंरा। कीन्ह किया (अकरोत् )। श्रापु स्वयम् । भा= भया (बभूव) हुत्रा। केवा = कमल वा केवडा । हउँ अहम्, यहाँ मुझे। पठवा = पठवद (प्रेषयति) का प्रथम-पुरुष, भूत-काल, पुंलिङ्ग का = कर । बीच = मध्य । परेवा = पारावत = पक्षी। पउन = पवन = वायु । साँस = श्वास। तो सउँ= तुझ से । लाई = लगाई = लगावद (लगयति ) का प्रथम-पुरुष, भूत-काल, स्त्रीलिङ्ग का एक-वचन। जोवद् = जोहता है (जेहति) प्रा० जोएदि । मारग = मार्ग । दिसिटि = दृष्टि । बिछाई = बिछा कर (विस्तीर्य) । जस = यथा = - = श्राप एक-वचन । कद