पृष्ठ:पदुमावति.djvu/६४४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

५२६ पदुमावति । २३ । राजा-गढ-छका-लंड । [२४३ सँभारा॥ बाउर अंध पेम कर लागू। सउँह धंसद किछु सूझ न ागू ॥ लौन्हेंसि धंसि सुआँस मन मारा गुरू मोछंदर-नाथ चेला परइ न छाँडइ पाछु । चेला मच्छ गुरू जस काछू ॥ जनु धंसि लौन्ह समुंद मरजौआ। उघरइ नइन बरइ जनु दौथा ॥ खोजि लौह सो सरग दुबारा। बजर जो मूंदे जा उघारा ॥ दोहा। बाँक चढाउ सरग गढ चढत गउ होइ भोर । भइ पुकार गढ ऊपर चढे सँधि देइ चोर ॥ २४३ ॥ % 3D जो = यः । पँथ = पंथ = पन्थाः =राह । मिला = मिल (मिलति) का प्रथम-पुरुष, भूत-काल, पुंलिङ्ग का एक-वचन । महेस = महेश (महादेव ) को। सेर्दू = सेवा कर ( संसेव्य )। गाउ = गया (अगात् ) । सो = वह । मुंद = मुद्रित = बंद । उहदू = उसी को। धुमि = धंस कर (श्राध्वंस्य ) । लेई = लेने के लिये। जहँ = जहाँ = यत्र। कुंड = कुण्ड । बिखम = विषम = कठिन = नौंचा ऊँचा । अउगाहा = अगाध = अथाह । जादू =जा कर (संयाय)। परा = परद् (पतति) का प्रथम-पुरुष, भूत-काल, पुंलिङ्ग का एक-वचन । पाश्रो = पावद (प्राप्नोति) = )= पाता है। थाहा = थाह = स्थल = तल । बाउर = वातुल= बौरहा। अंध = अन्ध = अंधा। पेम प्रेम । लागू = लगा = लग्न हुआ। सउँह = सौंह = संमुख । धंसद् = धंसता है (ध्वंस्यते )। किछु = कुछ = किञ्चित् । सूझ सूझदू (शाध्यति)= सूझता श्रागू श्रागे अग्रे । लौन्ह सि = लिया (अलात् ) । सुत्राँस मारा मार (मारयति) का प्रथम-पुरुष, भूत-काल, पुंलिङ्ग का एक-वचन । गुरू गुरु। मोकंदर-नाथ मत्स्येन्द्र-नाथ। संभारा = सँभारद् ( सम्भारयति) का प्रथम-पुरुष, भूत-काल, पुंलिङ्ग का एक-वचन । चेला= शिष्य । परदु = पडता है (पतति)। छाँडद् = छोडता है (छोडयति)। पाछ = पौछा = पृष्ठे । मच्छ = मत्स्य । जस = जैसा = यथा । काकू = ककुत्रा ( कच्छप )। जनु =जाने = जानौँ । लौन्ह = लिया (अलात् )। समुंद = समुद्र । मरजीत्रा = मर कर जौने-वाला= गोता खोर = गोता लगाने-वाला। उघर = उघरे-उघरदू (उद्दटते) का प्रथम-पुरुष, भूत-काल, पुंलिङ्ग का बहु-वचन । नदून = नयन = बरद् = बरे = बर (ज्वलति) का प्रथम-पुरुष, भूत-काल, पुंलिङ्ग का बह-वचन । 1 श्वास साँस। आँख।