पृष्ठ:पदुमावति.djvu/६४३

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२४२ - २४३] सुधाकर-चन्द्रिका। ५२५ कउन a - राह। = क नु = कौन । पानि = पानी (पानीय) 1 मर्दू = मै । पौत्रा = पौअद (पिबति ) का उत्तम-पुरुष, भूत-काल, पुंलिङ्ग का एक-वचन । भा=(बभूव) = भया = हुा। तन= तनु = देह । पाँख = पक्ष = पर । पनग= पन्नग = साँप । मरि = मर कर (मृत्वा)। जौत्रा = जीपद (जीवति) का प्रथम-पुरुष, भूत-काल, पुंलिङ्ग का एक-वचन । फलि फूल कर (सम्फुल्य ) । हिरदद् = हृदय । समाना = समादू (समाति) का प्रथम-पुरुष, भूत-काल, पुंलिङ्ग का एक-वचन । कंथा = कन्था = गुदरी। टूक टूक खण्ड खण्ड = टुकडे टुकडे । बिहराना बिहर (विहरति) का प्रथम-पुरुष, भूत-काल, पुंलिङ्ग का एक-वचन ॥ जहाँ = यत्र । पिरौतम = प्रियतम । वेद = वे=ते। बसहि = बसद् (वसति ) का बहु-वचन । जिउ = जीव । बलि = बलिदान। तहि = तिस । बाट = वाट = मार्ग बोलावद् = बोलावे (श्राहयेत् )। पाउँ स= पाय से। हउँ = अहम् = मैं। तह = तहाँ तत्र । चलउँ = चलूँ ( चलानि)= जाऊँ । ललाट = मस्तक = माथा ॥ ऐसी पद्मावती को करुणा भरौ वाणी को सुन कर, (राजा रत्न-सेन के लिये ) वसन्त (का समय) हो गया, नई शरीर उत्पन्न हो गई। शक की वाणी (देह में ठंढौ) हवा सौ लगौ, सोता हुआ, हनुमान के ऐसा उठा और जाग गया। चन्द्र ( पद्मावती) ने मिलने को श्राशा दी ( इस लिये) सूर्य (रत्न-सेन ) हजारौं कला वा किरणों से प्रकाशित हुआ। चिट्ठी को लिया, ले कर शिर पर चढाया, (ऐसा प्रसन्न हुआ) जानौँ चकोर की दृष्टि ने चन्द्र को प्राप्त कर लिया हो । (कवि कहता है कि, सच है) जो जिस की आशा का प्यासा है, वह, यदि झिझिकारा भी जाय, तो भौ उसी को ढूँढा करता है। (राजा कहता है कि) अब मैं यह कौन पानी को पौ लिया, (जिस से ) शरीर में पर जम गए (जिस से उडने की शक्ति हो गई ), और मरा हुआ ( मैं ) साँप जौ उठा। हृदय फूल उठा (देह में) नहीं समाता, और कंथा टुकडे टुकडे हो कर फट गया ॥ (रत्न सेन कहने लगा कि ) जहाँ वह प्रियतम (पद्मावतौ ) बसता है, उस राह में यह जीव बलि है; यदि वह ( पद्मावतो ) पैर से बोलावे वहाँ मैं शिर से चलूँ ॥ २४२ ॥ चउपाई। जो पँथ मिला महेसइ सेई। गण्उ सो मुंद उहइ धंसि लेई ॥ जहँ वह कुंड बिखम अउगाहा । जाइ परा जहँ पात्रो न थाहा ॥ ..