पृष्ठ:पदुमावति.djvu/६५१

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२४६] सुधाकर-चन्द्रिका। ५३३ - भवत= बजाए गए। बादूस बजा कर। जहाँ लगि = जहाँ तक । राजू = राज्य । होहु. हो। सँजोल संसज्जित तयार । कुर = कुमार = राज-कुमार । जो = जो=ये। भोगौ = भोग करने-वाले = जागौर पाने-वाले। सब = सर्व । दरदरी = घाँटौ। केकि = छेकयित्वा केक कर =रोक कर । धरहु =धरत =धरो। अब = अधुना = इदानीम् । जोगी योगौ। चउबिस = चतुर्विंशति = चौबीस । लाख = लक्ष । छतर-पति = छत्रपति । माजे- सज्जित किए गए। छपन = षट्पञ्चाशत् = छप्पन । दर दल = सेना। बाजन = वाद्य । बाजे = बजे द्वाविंशति । सहस = सहस्र = हजार। सिंघलो- सिंहलो सिंहल के हाथौ। चाले = चलाए गए। गिरिह = ग्रह = घर। पहार = प्रहार पहाड । पुहुमि = पृथ्वी = भूमि । हाले = हिले = हिलने लगे। जगत = जगत् = संसार । बराबर = एकतार लगातार । = देव = दत्त्वा = दे कर। चाँपा = चाँपद (चापयति ) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, एक-वचन । डरा= डरदू (दरति) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, एक-वचन । दूँदर = इन्द्र = देवराज । बासुकि = वासुकि = एक प्रकार का सर्प। हि हृदय । काँपा = चकम्पे = काँप उठा। पदुम = पद्म = सौ करोड । कोटि = करोड । साजे = मज्जित किए। श्रावहिँ =श्रायान्ति आते हैं। गिरि पर्वत । होइ = भूत्वा हो कर। खेह = धूलि = धूर । गगन = श्राकाश। कह = को। धावहि = धावन्ति दौडते हैं। जनु = जानौँ । भुइँ-चाल = भूमिचाल भूकम्प = भूडोल । चलत= चलते। तह = तहाँ = तत्र । परा = परद (पतति) का भूत-काल, पुंलिङ्ग का एक-वचन । कुरमहि = कूर्म को = कछुए को। पौठि = पृष्ठ पौठ । टूटि= टूटी = टूटद् (त्रुश्यति ) का भूत-काल, स्त्रीलिङ्ग, एक-वचन ॥ छतरहिँ छत्रों से छाताओं से। सरग = खर्ग। छादू गा = छा गया = छादित हो गया। सूरुज = सूर्य। गएउ = अगात् = गया। अलोपि = अलोप = अदृश्य । दिनहि = दिन में। राति = रात्रि = रात । अस = एतादृशौ = ऐसौ । देखौ = देखद् (दृश्यते ) का भूत-काल, स्त्रीलिङ्ग, एक-वचन । चढा = चढङ्क (उच्चलति ) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, एक-वचन । कोपि = सङ्कुप्य = कोप कर क्रोध कर ॥ (मन्त्री ने कहा कि) अाइए सदर अर्थात् गुदरी वाजे योगिओं के बहाने तयारी करिए, जहाँ तक राज्य है ( सब कोई ) बाजा बजा कर, अर्थात् डंका दे कर, चढिए । जो जागौरदार कुर हैं सब तयार हाँ और सब घाटिओं को रोक कर योगी को पक.। चौबीम लाख छत्रपति तयार हुए, सेना में छप्पन करोड बाजे बजने लगे।