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पृष्ठ:पदुमावति.djvu/६५३

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२७] सुधाकर-चन्द्रिका। ५३५ श्रम जानते । - दोहा। अाजु करहिँ रन भारथ सत्त बचा दइ राखि । सत्त करइ सब कउतुक सत्त भरइ पुनि साखि ॥ २४७ ॥ देखि = दृष्टा = देख कर । कटक = सेना । उ श्रपि । मदूमत = मदमत्त = मद से मस्त । हाथी = हस्तौ। बोले = बोल (वदति) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, बहु-वचन । रतन-सेन = रत्न-सेन। साथी = सार्थ = संगी। होत = होता= भवन् । श्राउ = आयाति श्राता है। दर =दरी= घाँटी। बहुत-बहुच, वा बहुतर । असूझा = अदृश्य अँधेरा= अव । ऐसा एतादृश । जानत = होइहद् = भविष्यति = होगा। जूझा युद्ध। 1 = त्वम्। जोगी = योगी। होदू = भूत्वा = हो कर । खेला=खेल (खेल) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, एक-वचन । इहद = दुह हि = दूसी। दिवस = दिन । कहँ = को। हम = अहम्, यहाँ वयम् । भए = हुए = बभूविम। चेला -शिष्य । जहाँ = यत्र । गाढ = कठिन । ठाकुर = ठकुर = मालिक । होई = होवे = भवेत् । संग = साथ। छाडदू= छोटयति = छोडता है। सेवक =स एव = वही। जो = यः। मरन-मरण । मनमि ताका ताकद (तर्कयति) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, एक-वचन । आज = अद्य । श्रादू = एत्य = श्रा कर। सो = सः = वह। पूजी = पूरी हुई। माका = शक = वर्ष। वरम् = बल्कि । जिउ जीव =प्राण। जाउ यातु =जाय। जाप्र= जाय। जनि = यो जिनः = मत । बोला=बोली = वचन । सत्त = सत्ता = सत्य। सुमेरु = सोने का पहाड जो उत्तर ध्रुव के नीचे है। डोला = डोल = डोलदू (दोलति)। गुरू = गुरु । केर का। जउँ-- यदि = जो । पावहिं = पा = प्राप्नुयाम्। सउँह = सम्मुख = सामने । चकर = चक्र । चलावहिँ = चलावे = चालयेयम् ॥ श्राजु = अाज = अद्य । करहि = करें = कुर्याम् । रन =रण = भारथ भारत। बचा = वचन । ददू = देव = भगवान । राखि रखता है (रचति)। कउतुक = कौतुक = क्रौडा । भरद = भरति = भरता है। पुनि = पुनः = फिर । माखि - माचौ = गवाह ॥ सेना और मदमत्त हाथिओं को देख कर राजा रत्न-सेन के माथी (कुर बोग। बोले, कि घाटित्रों में बहुत अंधेरा होता आता है, ऐसा जान पडता है कि युद्ध दास । सोई मन = मन में। बरु = न= संग्राम । राख