पृष्ठ:पदुमावति.djvu/६६३

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२५२] सुधाकर-चन्द्रिका। ५४५ = कमल । भप्रउभया 1 माँस । गुपुत =नाश। जस= यथा- पदुमावति = पद्मावती। कवला = कमल (मसि = शशि चन्द्र। जोती= ज्योतिः प्रकाश । हँसद = हसति = हंसती है। फूल = फुल्ल । रोश्रदू = रोदिति = रोती है। तब = तदा । मोती = मुक्ता= मौक्तिक । बरजा = बरजद् (वर्जयति) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, एक-वचन । पितपित्रा = पिता ने । हमौ= हास्य । अरु =' अपि च = और । रोजू= रुज = रोग वा रोज । लाए = लगाए । दूत = भेदौ । होदू = होता है। निति = नित्य रोज । खोजू = खोज = शोध । जउहि = जबहि = यदा हि । सुरुज = सूर्य। कह = को। लागेउ लगा = लगद (लगति) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, एक-वचन । राह = राहु । तउहि- = तबहि = तदा हि तभी से। कवल बभूव =त्रा। अगाह श्रागाह खबर। बिरह = विरह = वियोग। अगस्तौ = अगस्त्य ऋषि। विसमज बेसमय = विना समय । भमऊ =भण्उ = हुअा। सरवर = सरोवर =तडाग । हरख = हर्ष। सूखि शुष्क = सूख । सब = सर्व । गऊ= गया (अगात् ) । परगट = प्रगट = प्रकट । ढारि = धाराथित = धारा के ऐसा (धाड विसरणे से)। सकई = शक्नोति = सकती है आँसू अश्रु = श्राँस । घटि घटि= घट घट कर = कम हो हो कर। माँसु = मांस- गुप्त= लोप । हो। = भवति = होती है। नासू जैसे। माँझ = मध्ये = में । रनि = रजनौ =रात । आई = श्रावद (आयाति) का भूत- काल, खौलिङ्ग, एक वचन । बिगसत = विकाश होते। कुन्हिलाइ = कुमलिन = कुलान । राता= रक्त = लाल। बदन= वदन मुख। सेता= श्वेत = सफेद । भवर भ्रमर आवर्त्त । भवति =भ्रमन्ति घूमतौ। रहि गई = हो गई। अचेता= अचेतन = बेहोश ॥ चितहि =चित्त में। चितर =चित्र = तसबीर। कौन्ह = किया (अकृत )। धनि धन्या ( पद्मावती)। रो रो रो रो = रोम रोम = रोना रोत्रौँ । अंग -देह के अवयव । समेटि समेत्य = समेट कर = सङ्कुचित कर । सहम = सहस्र = हजार । साल = सालदू (शल्यति) का भूत-काल पुंलिङ्ग, एक-वचन । दुख = दुःख। श्राहि = आह । भरि = मृत्वा =भर कर। मुरुछि = मूर्छा खा कर = संमूर्य = मूर्छित हो कर । परी पर (पतति) का भूत-काल, स्त्रीलिङ्ग, एक-वचन । गद = गई = अगात् । मेटि = मिट = मट्टी=मृत्तिका ॥ पद्मावती कमल और चन्द्र-ज्योति है, हंसती है तो फूल चूता है और रोती है तब (श्राँसुओं से) मोती टपकती है। पिता ने हसौ और (विरह) रोग को रोक दिया, अर्थात् पिता का हुका हुआ कि यह हँसो ठट्टा न करने पावे और अकेली 69