पृष्ठ:पदुमावति.djvu/६६४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

५४६ पदुमावति । २8 । मंत्री-खंड । [ २५२ - २५३ - बैठ कर रोवे भी न, (पिता ने) भेदिओं को लगा दिया, रोज खोज होने लगी। जैसे ही सूर्य को राहु लगा, अर्थात् सूर्य-स्वरूप रत्न-सेन को राहु-रूप गन्धर्वसेन के सेना के लोग पकडने की इच्छा को उसी समय कमल (पद्मावती) के मन में यह खबर पहुँच गई। विरह अगस्त्य बेसमय (उदित) हुश्रा, सब हर्ष-रूप तडाग सूख गया। (पिता के भय से) जाहिरा में आँसू को नहीं गिरा सकती, (पर) मांस कम होते होते लोप हो कर नष्ट हो गई, अर्थात् दुबली हो गई, मांस गल गई, खाली हड्डी भर रह गई । जैसे दिन में रात हो भाई (इस लिये) प्रफुल्लित कमल (पद्मावती) कुम्हिला गया। ललित मुंह सफेद हो गया, (जल के) भवँर ऐसी घूमती घूमती अचेत हो गई ॥ अंग के रोएँ रोएँ को समेट कर जो धन्या पद्मावती ने (अपने ) चित्त के भीतर (रत्न-सेन को) तसबीर कौ, अर्थात् बनाई (दूस से) हजारों वाणों के सालने के ऐसा दुःख हुत्रा; आह भर मूर्छा खा कर गिर पडी और मिट गई । देवा-सुर-सङ्ग्राम में जब भगवान् मोहिनी-रूप धारण कर देवताओं में अमृत परोसने लगे तब सूर्य और चन्द्र के बीच में राहु दैत्य छिप कर बैठ गया था, अमृत पान करते ही सूर्य चन्द्र के बताने से भगवान ने सुदर्शन चक्र से उस का सिर काट डाला परन्तु अमृत के प्रभाव से दोनों टुकडे अमर हो कर आकाश में चलने लगे। धड को राहु और शिर को केतु कहते हैं । सूर्य और चन्द्र के कारण से राहु का शिर काटा गया दूमौ लिये वह बदला लेने के लिये अवसर पा कर सूर्य और चन्द्रमा को गरासता है। यह पुराणों में प्रसिद्ध कथा है॥ वर्षा ऋतु के अन्त मैं अगस्य तारा, जिसे अंगरेजी में Canopus कहते हैं, उदय होता है। दूस के उदय होते ही वर्षा की समाप्ति होती है और पोखरौ, पोखरे, सूखने लगते हैं; तुलसौ-दास ने भी अपने रामायण के किष्किन्धाकाण्ड में लिखा है कि- उदित अगस्त पंथ-जल सोखा । जिमि लोभहि सोख संतोखा ॥ प्रसिद्ध है कि रात को खिले हुए कमल कुम्हिला जाते हैं, कमल के मुंह बंद हो जाता है ॥ २ ५२ ॥ - फूल का चउपाई। पदुमावति सँग सखौ सयानी। गनि कइ नखत पौर ससि जानौ ॥ जानहिँ मरम कवल कर कोई। देखि बिथा रहिनि कइ रोई॥