पृष्ठ:पदुमावति.djvu/६६६

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५४८ पदुमावति । २४ । मंत्री-खंड । [२५३ - २५४ बभूव = भया = इत्रा। हनुवंत = हनुमंत = हनुमान, प्रसिद्ध रामायण के महावीर और राम के सेवक । जारे =जारने । ऊपर = उपरि (ज्वलनोपरि)। जारई =जार (ज्वलयति) =जारता है। तजद = त्यजति = तजता है = छोड़ता है। कद् = कृत्वा कर । भसमंत भस्म =राख । पद्मावती के साथ की नक्षत्र-रूप चतुरौ सखी गन कर, अर्थात् रुख देख कर शशि ( पद्मावती) को पौडा को जान गई । कमल (पद्मावती) का भेद कोर्दू (सखित्रा ) ही जानती हैं, विरहिणी (पद्मावती) की पीडा देख कर (सब सखित्राँ) रोने लगौं । ( आपस में कहने लगौं कि) विरह (पति-वियोग) कठिन काल का अवतार है, विरह नहीं सहा जाता (इस लिये उस से) बल्कि काल भला है। काल (तो) प्राण खौंच कर, और ले कर चला जाता है, अर्थात् जीव केवल ले कर मरी शरीर को छोड देता है। पर विरह-काल (तो) मारने पर मारता है। विरह भाग पर श्राग डालता है, बज्राग्नि विरह घाव पर घाव करता है। विरह बाण के ऊपर बाण फेकता है, विरह रोग पर रोग फैलाता है। विरह माल पर नया साल है, विरह काल पर भयङ्कर काल है। शरीर रावण का गढ (लङ्का) हुई है, विरह हनुमान् हुआ है और (उस गढ पर) चढा है,। जारने के ऊपर जार रहा है (शरीर को) भस्म कर के (भौ) नहीं छोडता है॥ सहवासी विजानीयात् चरित्र सहवासिनाम, दूस नियम से माथ को रहने-वालौं कोरूप सखित्रा ही कमल (पद्मावती) का भेद जानती हैं ॥ यह कवि का लिखना बहुत उचित है। रामायण-सुन्दर-काण्ड में हनुमान का लङ्का जारना प्रसिद्ध है, तुलसौ-दास ने भी लिखा है कि 'उलटि पलटि लंका कपि जारा। कूदि परा पुनि सिंधु मँझारा' ॥ इस लिये मलिक महम्मद का तनु लंका, विरह इनुमान और जारे ऊपर जारई यह कहना बहुत ही रोचक है ॥ २५३ ॥ चउपाई। कोइ कुमोद कर परसहिं पाया। कोइ मलयागिरि छिडकहिँ काया ॥ कोइ मुख सौतल नौर चुआवहिँ। कोइ अंचल सउँ पउन डोलावहिँ ॥