पृष्ठ:पदुमावति.djvu/६७०

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५५२ पदुमावति । २७ । मंत्री-खंड । [२५५ 2 भान= तद् = त्वम् = तैं। हरि = हृत्वा हरण कर। लंक = लङ्क = कटि = कमर । हराई हराव (हारयति) का भूत-काल, स्त्रीलिङ्ग, एक-वचन । केहरि -केशरी सिंह। हारि= हार कर = आहार्य । करसि हदू = करती है ( करोषि)। हे हरि = हे हरे। कोकिल-बदनौ = कोकिल-वचनौ = कोकिला-सौ बोलने-वाली। जग = जगत् = संसार । मोहा मोही = मोहदू (मोहयति) का भूत-काल, मध्यम-पुरुष, स्त्रीलिङ्ग, एक-वचन । को = कौन कः । व्याधा = व्याध। हो = होदू = हो कर = भूत्वा । गहदू =ग्रमति: ग्रसता है। बिछोहा = विक्षुधा = वियोगिनी = विरहिणौ ॥ कवल = कमल । करौ कलौ = कलिका । पदुमिनि = हे पद्मिनि । गद् = गई = गात्। निशि = निशा=रात। भण्उ = भया = बभूव = हुआ। बिहान = व्यह = सबेरा। अबहु= अब भी = इदानीमपि। सम्पुट = बंद मुख। खोलेसि = खोलौ = खोलइ (खोलति) का भूत-काल, मध्यम-पुरुष, स्त्रीलिङ्ग, एक-वचन । उठा = उठद् (उत्तिष्ठते) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, एक-वचन । जग = जगत् वा जग = जगि = जाग्टत्वा =जाग कर। भानु = सूर्य ॥ इस तरह से ( पद्मावती) चार घडी तक ग्रहण में ग्रस्त थौ, फिर ब्रह्मा ने हृदय में ज्योति को प्रकाश को, अर्थात् फिर हृदय में प्राण प्राया। उच्छास ले कर, जब कर, और (हृदय में) भर कर (ठंढी) साँस लौ, (सब सखिों का) श्राधार हुई और जौने को श्राशा हुई। सब सखित्रा विनय करने लगौँ कि राड से चन्द्रमा कूट गया, (हे रानी) तेरी ही ज्योति से सब किसी को ज्योति है। दूं चन्द्रमुखी संसार को उजिबारी है, (नहीं जानतौं कि) किस ने (उस उजित्रारी को) हर लिया था और अँधेरा कर दिया था। गज-गामिनि, गर्वीलो और हठौलौ है, अब क्यों दूस तरह से ढीली हो कर ( अपने ) मत को छोडती है। मैं ने कमर को चुरा कर सिंह को हरा दिया, अर्थात् सिंह को कमर से भी तेरी कमर पतली है, अब क्यों हार कर हे हरि, हे हरि करती है, अर्थात् अब क्यों जौ में हार कर हे हरि, हे भगवान, हाय भगवान् कह कह कर कराहती है। सूं जग के मोहने-वाली कोकिल- वचनौ है, कौन व्याध हो कर (तुझ) विरहिणी को पकडता है ॥ हे पद्मिनि दूँ कमल-कलौ है मो रात बीत गई, सबेरा हुआ अब तक भौ सम्पुट को नहीं खोलौ, अर्थात् अब तक तेरौ मुख-कमल-कलौ नहीं खुली (विकशित हुई), क्योंकि रे (पद्मावति देख) जगत् में सूर्य उठ आया, वा सूर्य जग कर उदय हुआ ॥ २५५ ॥ -