पृष्ठ:पदुमावति.djvu/६८०

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५६२ पदुमावतौ । २४ । मंत्री-खंड । [२६० =स:- -बुरी कदू = को। छाया = काह। कहत = कहते ( कथयन्) । लाज = लज्जा । अउ श्रपि = और । रहद् = रहति= रहता है। प्रक = एक । दिसि = दिशि = दिशा में । श्रागि अग्नि । दोमरि = दूसरौ= द्वितीया । सौऊ = मौत = शीत = पानी। सो सो वह । मोर = मेरा = मम । खेवक = खेवने-वाले । गुरुदेऊ = गुरुदेव । उतरउँ= उत्तरामि = उतरूँ। तेही तेही = तिम । बिधि = विधि प्रकार। खेऊ = खेवदू (खेवते) का विध्यर्थ में मध्यम-पुरुष, पुंलिङ्ग का एक-वचन । सूर = सूर्य । उदद-गिरि उदय-गिरि उदयाचल। चढत = चढते = उच्चलन् । भुलाना = भुलदू (भ्रमति) का भूत-काल, एक-वचन । गहने = ग्रहणे = ग्रहण में । गहा = ग्रस्त हुश्रा (जग्टहे)। कवल = कमल । कुन्हिलाना = कुन्हिलादू का भूत-काल, पुंलिङ्ग का एक-वचन = कुल्लान हुत्रा = तरह से मलिन हुआ। श्रोहट = अरहट्ट = रहँट = पुरवट । हो = हो कर =भूत्वा। मरउँ = मरती हूँ (मरामि )। झूरौ = झूर हो कर = सूख कर = झरित्वा = झर कर । सुठि = सुष्टु = अच्छा । मरन = मरण = मरना । निअरहि = निकटे हि = निकट में । दूरौ= दूर। घट= शरीर । मँह = मध्ये = में । निकट = नगीच। बिकट = विकट कठिन । भा = भया = बभूव = हुआ। मेरू = मेरु = मेरुदण्ड । मिलेहु = मिलने पर । मिल = मिलति = मिलता है। परा = = पर (पतति) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, एक-वचन । तस = तथा = तैसा। फेरू = फेर = फेरा। दामवती = दमयन्तौ। नल = राजा नल । हंस = प्रसिद्ध मानस सर का पची। मिलावा = मिलावद (मेलयति) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, एक-वचन । तब = तदा तो। हीरामनि = हीरामणि (शुक)। नाउँ: = नाम । कहावा = कहावद (कथ्यते ) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, एक-वचन ॥ मूरि = मूली। सजीवनि = सञ्जीवनी = जिलाने-वालो। दूरि= दूर। इमि = दूस तरह से = दूस प्रकार से। सालौ = सालदू (शल्यति ) का भूत-काल, स्त्रीलिङ्ग, एक-वचन। सकतौ = शक्ति। बानु =बान = = प्राण =जीव । मुकुत = मुक्त अब = इदानीम् = अधुना । होत हद = होता है। बेगि = वेगेन = शीघ्र । देखावह देखाश्रो (दर्शयत )। भानु = श्रानय = श्रानो=ले श्राश्रो ॥ पद्मावती उठ कर (हौरामणि के ) पैर को टेकने लगी, अर्थात् उस के पैर पर अपना शिर रख दिया (और कहने लगी कि ) अहो (शुक) तुम्ही से प्रियतम को छाया है, अर्थात् तुम्हारे ही उद्योग से अपने प्रियतम की परछाहौँ देख सकती है। कहने में लज्जा पाती है और (कहे विना ) जौ रहता नहौं, एक तरफ भाग और पडा वाण। प्रान =छटता।