५७२ पदुमावति । २४ । मंत्री-खंड । [२६४ . - उस को सब शक्ति नष्ट हो जाती है। इस पर पद्मावती कहती है कि ऐसा जो रन- सेन सिद्ध हो गया तो उसी का सेवन करूंगी, उसी से सब रोग दूर करूँगौ; जो पारा (चुद्र मनुष्य) नौबू के रस से (बुद्र मनुष्य के भोग-विलास से ) राख हो जाता है अब उसे कौन मारे। (हे हौरा-मणि) अब जा कर तुम मेरे सँदेसे को कहो कि ( पद्मावती ने कहा है कि) अब योग का त्याग करो (तपस्या पूरी हो गई) और अब राजा हो । यह न जानो कि मैं तुम से दूर हूँ, वह (तुम्हारौ) शूलौ मेरी आँखों में गडी हुई है। तुम्हारी शरीर के पसीने के घटने में (चाहे देर हो तो हो, पर) मेरे प्राण के घटने में, अर्थात् निकलने में, देर न लगेगी। आप लिये मैं रान-सिंहासन मज चुकी, अब आप यह लोक पर-लोक दोनों में मेरे राजा अर्थात् खामी हैं । (अरे होरा-मणि जा कर बेखटके कह दे कि) जब तक जीएँ मिल कर भोग- विलास करें, और मरें तो एक ही साथ रहें। हे (प्राण) प्रिय, श्राप के जीव को कुछ न हो, जो हो सो मेरे जीव को हो ॥ २६४ ॥ इति मन्त्रि-खण्ड-नाम चतुर्विंश-खण्डं समाप्तम् ॥ २४ ॥
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