२६५] सुधाकर-चन्द्रिका। ५७३ अथ सूरौ-खंड ॥ २५॥ चउपाई। बाँधि तपा आनेउ जहँ सूरौ। जुरौ आइ सब सिंघल पूरौ ॥ पहिलइँ गुरू देइ कहँ आना। देखि रूप सब कोउ पछिताना ॥ लोग कहहिँ यह होअइ न जोगी। राजकुर कोउ अहइ बिओगी। काहू लागि भएउ हइ तपा। हिअइँ सो माल करइ मुख जपा ॥ जस मारइ कहँ बाजा तूरू। सूरौ देखि हँसा मन सूरू ॥ चमके दसन भएउ उँजिारा। जो जहँ तहाँ बौजु अस मारा ॥ जोगौ केर करहु पइ खोजू। मकु न होअइ यह राजा भोजू ॥ दोहा। = सब पूँछहिँ कहु जोगी जाति जरम अउ नाऔं । जहाँ ठाओँ रोअइ कर हँसा सो कहु केहि भाओ ॥ २६५ ॥ बाँधि 1= बडा = बाँध कर । तपा = तपखौ = तपसी। आनेउ = श्रानयत् ले आए। जह = यत्र = जहाँ । सूरी= शूली = फाँसी । जुरी = युक्ताऽभूत् = एकट्ठी हुई । श्राद - सर्व । सिंघल = सिंहल। पूरी=पुरी=पुर के रहने वाले। पहिलइँ = प्रथमे = पहले। गुरू = गुरु = रत्न-सेन । देव कह = देने के लिये =शूली देने के लिये । आना = श्रानयत् = ले आए। देखि = दृष्टा= देख कर । रूप = सूरत। कोउ = कोऽपि = कोई। पछिताना पश्चात्तताप पछताने लगे (यहाँ पर बहु-वचन एत्य श्रा कर। सब=
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