पृष्ठ:पदुमावति.djvu/७०३

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३७०-२०१] सुधाकर-चन्द्रिका। ५८५ उसी के माथ मैं भी जीऊँ। तब (पद्मावती के दूस) सँदेस को सुन कर राजा रत्न-सेन ने हँस दिया (और कहने लगा कि मेरा) प्राण (उस के ) प्राण में और ( मेरी) शरीर (उम कौ) शरीर में बस गई है। (इतना कह कर राजा रत्न-सेन चुप हो गया, आँख बंद कर पद्मावती का ध्यान कर समाधि में हो गया) ॥ (यह राजा की दशा देख कर ) हीरामणि शक और दसौंधी भाट (महादेव जौ) (दोनों) एक स्थान पर (एक? हो, मलाह कर ) जीव (देने ) पर ( तयार हुए। कहने लगे कि) चलो जहाँ राजा गन्धर्व-मेन बैठे हैं वहाँ जा कर ( कुछ ) बात (तो) कहें ॥ २७० । चउपाई। राजा रहा दौठि कइ अउँधौ। रहि न सका तब भाट दसउँधौ ॥ कहेसि मेलि कइ हाथ कटारौ। पुरुस न पाहिँ बइठि पिटारी ॥ कान्ह कोपि कइ मारा कंसू। गूंग कि फूंक न बाजइ बंसू ॥ गंधरब-सेन जहाँ रिस बाढा। जाइ भाट आगइँ भा ठाढा ॥ ठाढ देखि सब राजा राऊ। बाएँ हाथ दोन्ह बर-भाऊ॥ गंधरब-सेन तु राजा महा। हउँ महेस मूरति अस कहा ॥ जोगौ पानि आगि तूं राजा। आगिहि पानि जूझ नहिँ छाजा ॥ दोहा। आगि बुझाई पानि सउँ तूं राजा मन बूझ। तोरइ बार खपर हइ (लौन्हे ) भिखिा देहि न जूझ ॥ २७१ ॥ । रहा = रहह (तिष्ठति) का भूत-काल, पुंखिङ्ग, प्रथम-पुरुष, एक-वचन । दौठि = दृष्टि = आँख । कद = कर = कृत्वा। अउँधी = श्रौंधी = अधः = नौचे। रहि = रह = ठहर = स्थिर । मका = मकदू (शक्नोति) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, प्रथम-पुरुष, एक-वचन । तदा। भाट स्तुति करने-वाला। दसउँधौ = दशधी = भाटौँ को एक जाति । कहसि अकथयत्

कहा। मेलि = मेलथित्वा = मेल कर = ले कर । हाथ

कटारी= कटार = कर्तरी। पुरुम पुरुष = मर्द। श्राहि = शोभन्ते = मोहते हैं। तब 74