सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:पदुमावति.djvu/७०४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

५८६ पदुमावति । २५ । सूरी-खंड । [२१ = = वंश बठि= उपविश्य = बैठ कर । पिटारी=पेटिका = पेटारौ। कान्ह = कृष्ण = भारत के प्रधान नेता = भगवान का श्राठवाँ अवतार। कोपि कुपित्वा कोप कर = क्रोध कर। मारा मार (मारयति) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, प्रथम-पुरुष, एक-वचन । कंसू = कम = प्रसिद्ध मथुरा का राजा। गूग गंगा = मूक । कि = को। फॅक फुकार। बाजदू = वादते = बजता है। बंसू बाँस । गंधरब-सेन = गन्धर्व-सेन । जहाँ = यत्र । रिम = रोष = क्रोध। बाढा = ववृधे = बढा था। जादू =त्राथाय = जा कर। भाग₹ = अग्रे= आगे = सामने। भा= बभूव = भया = हुआ। ठाढा खडा = स्थित । ठाढ खडा। देखि = दृष्ट्वा = देख कर । सव सर्व। राऊ राय = छोटे राजा। बाएँ= वाम बायाँ । दोन्ह अदात् = दिया। बर = वर= श्रेष्ठ । भाऊ=भाव। बरभाव =ष्ठ-भाव उचित रीति से हाथ उठा कर आशीर्वाद। तु = = त्वम् = तुम। महा = महान् = बडा। हउँ = हौं = अहम्। महेस = महेश = महादेव । मूरति = मूर्ति। श्रम = एतादृश = ऐसा = एवम् । कहा = अकथयत् । जोगी = योगी। पानि पानीय = पानी। श्रागि अग्नि = श्राग। दूं= त्वम्। जूझ = युद्ध । छाजा = छाजद ( सज्जते) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, प्रथम-पुरुष, एक-वचन ॥ बुझाई = निवर्त्तति = बुझती है। सउँ = से। मन = मनमः = मन से। बुध्यख समझ । तोर = तवैव = तेरे-हो। बार

द्वार।खपर

खर्पर = खप्पड भीख मांगने का पात्र । हद् = अस्ति = है। लौन्हे = लिए। भिखिश्रा भिक्षा = भौख । देहि = दे । युध्यस्ख राजा गन्धर्व-सेन नौचे की ओर आँख किए था, (उस समय) तब दसौंधी भाट रह न सका। हाथ में कटार ले कर (मन में ) कहने लगा कि पेटारी में बैठने से पुरुष नहीं मोहते, अर्थात् मन की बात मन-ही में रखने से पुरुष को शोभा नहीं। बुद्धिमान् वही जो समय पर अपनी बात सुना कर अपना काम साधे। जिस को प्रौढि नहीं उस का पढना व्यर्थ है। शास्त्रों में लिखा भी है कि, प्रागल्भ्यहीनस्य नरस्य शास्त्रं शास्त्रं तथा कापुरुषस्य हस्ते । नो प्रौतिमुत्पादयते शरीरे अन्धस्य भार्या दूव दर्शनीयाः ॥ कृष्ण ने क्रोध कर (गर्ज कर और अपना पराक्रम देखा कर ) कंस को मारा, गूंगे की फूक से वंशी नहौं वजती, अर्थात् जिम के गले में बोलने की सामर्थ्य नहीं वह क्या वंशी बजावेगा! ( ऐसा बिचार कर) जहाँ क्रोध से बढा हुआ राजा गन्धर्व-सेन = लड ॥