पृष्ठ:पदुमावति.djvu/७०८

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पदुमावति । २५ । सूरौ-खंड । [२७२ - २७३ - मकरन्द-कल्पलता में लिखा है- शाके ऽष्टगुणिते नन्दै जिते शेषतो घनः । श्रावर्त्त एकशेषे स्यात् संवर्ताख्यो द्विशेषके ।। त्रिशेषे पुष्करी द्रोणचतुःशेषे प्रकीर्तितः । कालनामा पञ्चशेषे षट्शेषे नौलकः कृतः ॥ सप्तशेषे स्याद्वायुरष्टावशेषके । नवशेषे तमो नामा क्रमान्मेघा नव स्मृताः ॥ कच्छप एक भगवान का अवतार है। पुराणों में कथा है कि जब चौर-मागर मथने जाने लगा उस समय मन्दर मथानी के ठहरने के लिये भगवान ने कच्छप का रूप धारण किया। फिर कच्छप और वराह (शूकरावतार ) ये दोनों पृथ्वी को नौचे गिरने से रोके हुए हैं। प्रोष भी अपने हजार फनौँ से पृथ्वी को रोके हुए है जिस में पृथ्वी नौचे न चली जाय ॥ कथा है कि एक वार युधिष्ठिर के छोटे भाई भीमसेन अभिमान से अपने माथिओं से कहते बरसात में कहौं चले जाते थे कि कुम्भकर्ण में कुछ भी बल न था। जौं आज वह होता तो मैं एक हाथ उसे उठा कर समुद्र पार फेंक देता। इस बतकही में ऊपर आँख किए अभिमान से भरे बडे उमंग से आगे आगे चले जाते थे। नीचे की ओर नजर न रहने से अकस्मात् एक पानी भरे बडे ताल में गिर कर डूबने लगे। माथिओँ के बडे जतन से मरते मरते निकले। फिर पीछे से पता लगाने पर जान पडा कि कुम्भकर्ण को खोपडी पानी से भरी हुई बडे ताल ऐसी हो गई है। तुलसौ-दास रामायण में भी किसी ने क्षेपक में लिखा है कि 'जोजन तीन सौस को फेरी' अर्थात् कुम्भकर्ण के शिर को फेरौ (खोपडी) तीन योजन याने बारह कोस को थी। भारतवर्ष में भौमसेन के अभिमान-भंग की यह कथा घर घर प्रसिद्ध है पर मुझे अभी तक दूस का पता न लगा कि यह कथा किस पुराण की है ॥ २७२ ॥ चउपाई। राोन गरब बिरोधा रामू। उहई गरब भाउ सँगरामू ॥ तेहि राोन अस को बरिवंडा। जेहि दस सौस बौस बहु-दंडा ॥ सूरज जेहि कइ तपइ रसोई। बइसुंदर निति धोती धोई ॥ सक सउँटिया ससि मसियारा। पउनु करइ निति बार बोहाग॥ मौचु लाइ कइ पाटौ बाँधौ । रहा न ओ सउँ दोसरि काँधौ ॥