पृष्ठ:पदुमावति.djvu/७१७

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२७७] सुधाकर-चन्द्रिका । ५८ तेइँतिस कोटि देोता साजा। छपन कोटि बइसुंदर बरा। अउ छानबइ मेघु-दल गाजा ॥ सवा लाख परबत फरहरा॥ दोहा। नवइ नाथ चलि आवहौँ अउ चउरासी सिद्ध । अहुटि बजर जर धरती गगन गरुर अउ गिड् ॥ २७७ ॥ जस तृत्वा घर कर = पकड कर । घण्टा । बजावा =बजावर भाटभट= स्तुति करने वाला। भेस = वेष = रूप। ईसुर = ईश्वर = महादेव । = यथा = जैसे। भाखा = भाखदू = (भाषते) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, प्रथम-पुरुष, एक-वचन। हनुवंत हनुमान् । बौर = वौर योद्धा । रहद = तिष्ठति = रहता है। राखा रखने से = रक्षणतः । लौन्ह अलात् = लिया। चूरि = चूर्ण = चूर । ततखन = तत्क्षणे =तिम क्षण में उस क्षण में । वद् = वह वा उस । सूरी=शूली । धरि मुख = मुंह । मेलसि = अमेलयत् = मेल दिया डाल दिया । जानहुँ = जाने = जानौँ। मूरी= मूली = मूलिका = मुरई = एक खाने का कन्द । महादेत्रो = महादेव । रन =रण = सङ्ग्राम । घंट ( वादयति ) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, प्रथम-पुरुष, एक-वचन । सुनि कदू = श्रुत्वा सुन कर। सबद शब्द = अावाज । बरम्ह = ब्रह्मा। चलि अावा =' भायात् चला पाया। चढे चढद (उच्चलति) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, प्रथम-पुरुष, बहु-वचन । अतर = अस्त्र = जो कि मन्त्र से चलाया जाय । लेट् = श्रालाय = ले कर । बिसुन = विष्णु । मुरारी मुरारि = मुर के शत्रु । इंदर-लोक = इन्द्र-लोक। सब सर्व। लाग = लग (लगति) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, प्रथम-पुरुष, एक-वचन । गोहारी= गोहार = गोपन =रक्षण= रक्षा करना। फनपति = फणिपति साँपों का राजा = पोष नाग। मउँ= से | काढा काढदू (कर्षति) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, प्रथम-पुरुष, एक-वचन । अमटउ= अष्टौ आठो। कुलौ = कुल के । नाग = साँप मर्प। भा= बभूव हुआ, यहाँ हुए। ठाढा = खडा = उत्थान । तेइंतिम = तेतीम = त्रयस्त्रिंशत् । कोटि करोड। देश्रोता = देवता। साजा = साजडू (सज्जते) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, प्रथम- पुरुष, एक-वचन । उ अपि = श्रीर । छाँनबदू = षण्णवति = छानवे । मेघु-दल = मेघ- दल = मेघौँ को सेना = बादलों के झुंड । गाजा = गाजदू (गर्जति = गरजद) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, प्रथम-पुरुष, एक-वचन । छपन = षट्पञ्चाशत् = छप्पन । बदसुंदर = फन = फणा।

भया

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