पृष्ठ:पदुमावति.djvu/७३३

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२८३] सुधाकर-चन्द्रिका। भागे। हीरामनि = हीरामणि । रसना = जिहा =जीभ । रस = रस भरी बात। खोला खोल (स्वलयति = उहाटयति) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, प्रथम-पुरुष, एक-वचन । देव = दत्त्वा = दे कर । अमौस -आशीर्वाद । अउ = अपि = और । असतुति स्तुति। बोला -बोल (वदति ) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, प्रथम-पुरुष, एक-वचन । ढूंदर = इन्द्र। राज-राजेसुर = राजराजेश्वर = राजाओं के राजाओं का ईश्वर । महा = महान् = बडा । सउँहौँ = सम्मुखे हि = सामने । रिस रोष = क्रोघ । किछु = किञ्चित् = कुछ । जाण = जाता। कहा=कथनम् । पद अपि निश्चयेन । जेहि = यस्य = जिस । बात = वार्ता। हो = भवति = होता है। भलि =भला= अच्छा =वर । श्राग₹ = अग्रे सेवक = दास । निडर = निर्दर = निर्भय। कहद् कथयति = कहता है। लाग₹ = लगे = लग्ने। सुश्रा = शुक = सुग्गा। सुफल = अच्छा फल। अबॅिरित = अमृत । खोजा खोजद (अन्वेषति ) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, प्रथम-पुरुष, एक-वचन । हो = अस्ति = है। बिकरम = विक्रम = विक्रमादित्य = उज्जयिनी का प्रसिद्ध एक राजा। भोजा = भोज = धारानगरी का प्रसिद्ध एक राजा। हउँ= हौं = अहम् = मैं । तुम्ह = आप। श्रादि = प्रथम = प्रधान। गोमाई = गोखामौ = मालिक प्रभु। सेवा = टहल = खिदमत। करउँ= करवाणि = करूँ। जिउँ जीवानि = जौएँ। जब ताई = यावत् : = जब तक। जेहूँ यैः = जिन्हों ने । जिउ = जीव । दोन्ह = अदात् = दिया । देखावा = देखावद् ( दर्शयति) का भूत-काल, पुंलिङ्ग, प्रथम-पुरुष, एक-वचन । देसू देश। सो = सः=वह। जिन जीव । मह = मध्ये

में । बस

वमति बसता है। नरेसू = नरेश जो= यः। मन = मनमि = मन में। एकदू = एकः = एक। यूँही = त्वं हि। मोई = एव = वही। पंखि = पनौ= पंखो= पंछी = चिडिया । जगत् = संसार। रत-महौ = रक्त-मुखौ = लाल मुँह को ॥ नदून = नयन = आँख । बन = वचन । सरवन = श्रवण = कान । बुधी बुद्धि। सबद सभी। तोर = तव = तेरा । परमाद प्रसाद । मोर = मम = मेरी। इयमेव = यही। निति = नित्य = रोज । बोलउँ = बदामि = बोलता हूँ। श्रासिरबाद = आशीर्वाद = शुभवचन ॥ हौरामणि ने जीभ से रस को खोला, अर्थात् अमृत-वाणणे बोलना आरम्भ किया, (राजा गन्धर्व-सेन को) आशीर्वाद दे कर और स्तुति कर बोलने लगा। (कि ) हे इन्द्र, हे बडे राज-राजेश्वर, (प्रभु को) सामने क्रोध से (भरा देख ) कुछ कहा नहीं जाता, - राजा। स जगत = सर्व हि