२६] सुधाकर-चन्द्रिका। ३६ चउपाई। गंधरब-सेन सुगंध नरेलू । सो राजा वह ता कर देख ॥ लंका सुना जो रावन राजू । ते-हु चाहि बड ता कर साजू ॥ छप्पन क्रोड १) कटक दर साजा। सबइ छतर-पति अउ गढ राजा ॥ सोरह सहस घोर घोर-सारा। साव-करन अउ बाँक तुखारा ॥ सात सहस हसती सिंघलौ । जनु कबिलास इरावति बली ॥ असु-पती क सिर-मउर कहावइ । गज न-पती क आँकुस गज नावइ ॥ नर-पतौ क अउ कहउँ नरिंदू । भू-पती क जग दोसर इंदू ॥ दोहा। अइस चकवइ राजा चहूँ खंड भय होइ। सबइ आइ सिर नावही सरिबर करइ न कोइ ॥ २६ ॥ गंधरब-सेन = गन्धर्व-सेन। नरेसू = नरेश। रावन राजू = रावन राजा। छतर-पति छत्रपति । सहस = सहस्र = हजार । घोर-सारा = घोडे को शाला = घोटक-शाला । श्याम-कर्ण = जिन के सब अङ्ग श्वेत केवल कान काले हाँ। बाँक तेज । तुखारा = घोडा। असु-पतौ = अश्वपति = घोडे पर चढने-वालों में श्रेष्ठ । सिर- मउर = शिरो-मयूर = शिर पर मयूर के ऐसौ टोपौ। गज-पती = गजपति = हाथी पर चढने-वालों में श्रेष्ठ । नर-पतौ = नर-पति= राजा। नरिंदू = नरेन्द्र । भू-पतौ भू-पतिः पृथ्वी के पति = जिमौदार लोग, जिन के अधिकार में केवल जोतने बोने के लिये भूमि हो । इंदू = दुन्द्र । चक्कवद् = चक्रवत्तौ । मरिबर = बहस = सवाल जवाब ॥ गन्धर्व-सेन जो सुगन्ध (सुन्दर गन्ध से भरा, अर्थात् जिस के शरीर से सुगन्ध महकती है) राजा, सो (वहाँ का) राजा है, और वह (सिंघल-द्वीप) तिसौ (राजा) का देश है ॥ लका में जो रावण राजा सुना है, तिस से भी बढ कर तिस का (गन्धर्व-सेन का) बडा माज (तयारी) है ॥ छप्पन करोड कटक-दल ( सेना का समूह ) साजा हुआ है, सब (छप्पनो करोड ) छत्रपति और (एक एक) गढ के राजा हैं ॥ (जिन के चलने में ) सेवक उन के शिर पर छत्र लगाते हुए चले । (पहले बडे वीरों को यह प्रतिष्ठा प्राप्त साव-करन वक्र (१) तौसरे दोहे को दवौं चौपाई देखो।
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