सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:पदुमावति.djvu/९४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

४६ पदुमावति । २ । सिंघलदीप-बरनन-खंड । - - 11 पर्यन्त पृथ्वी पर गिरने नहीं देते, और अपने सब कर्म का साक्षी उमौ दण्ड को समझते हैं। इन्हें दण्डौ भी कहते हैं। कोई कोई तीन दण्ड धारण करते हैं। मरने के समय, अशक्त होने पर, जो सन्यास है, उसे अातुर सन्यास कहते हैं। उस को जो ग्रहण करता है, उसे अातुर सन्यासी कहते हैं ॥ राम-जति = राम-यति, जो राम को उपासना में विरक्त हो कर रहे, जैसे अयोध्या के वैरागी लोग॥ मस-बासी = मास-वामी, जो एक स्थान पर मास भर वास करें, फिर दूसरे स्थान पर जा कर वहाँ भी एक महौना रह कर उसे भी छोड तीसरे, चौथे इत्यादि पर बसते रहे ॥ सु-महेसुर = सु-माहेश्वर, जो अपनी श्राकृति महादेव (महेश्वर) के ऐसौ बनाते हैं, अर्थात् जटा, चन्द्र, रुद्राक्ष इत्यादि धारण करते हैं, और घर से विरक्त हो शिव का पूजन करते हैं ॥ जङ्गम, जो एक जगह न रहे, सर्वदा घूमा करें। प्रायः ये लोग वीरभद्र (जो कि दक्ष के यज्ञ को विध्वंस किया था) को उपासना करते हैं ॥ जतौ = यति, जो मंयम अर्थात् आचार से रहे। जैनियाँ में बहुधा यति होते हैं, और ये घरबारू भी होते हैं ॥ देवी = वाम-देवौ ॥ सती दक्षिण देवी ॥ ब्रहमचरज = ब्रह्मचर्य, जो यज्ञोपवीत होते-हौ, सन्ध्या गायत्री इत्यादि नित्य क्रिया है,-दूस क्रिया को करते, गुरु के घर में रह कर, वेद को पढता है, उसे ब्रह्मचारी कहते हैं | दिगंबर = जिन का दशोदिशा-ही अम्बर (वस्त्र ) है, जैसे परमहंस, नागा इत्यादि। वैष्णवों में भी दिगम्बरी और निर्वाणो, निर्मोही, इत्यादि अखाडा है। परन्तु इन अखाडाओं के साधु अब श्वेतवस्त्र धारण करते हैं ॥ जैनियों में भौ दिगम्बर होते हैं ॥ सन्त = जो भगवत्कथावार्ता का प्रेमी हो ॥ सिद्ध = जिसे अणिमा ( छोटा हो जाना), महिमा (बडा हो जाना), लघिमा (हलका हो जाना ), गरिमा (गुरु हो जाना), प्राप्ति (चाहे जिसे छ ले, जैसे अंगुली से चन्द्रविम्ब को), प्राकाम्य (जो मनोरथ हो, मो शीघ्र हो जाय), ईशत्व (चाहे जिस का प्रभु हो जाय) और वशित्व (चाहे जिसे वश कर ले), ये बाठो सिद्धि वश में हो ॥ योगी = जो योग जानता हो, समाधि लगाता हो ॥ विभोग = वियोग = किसी के वियोग से जो विरक्त हो गया हो। सेवरा = यह झुण्ड के झुण्ड चलते हैं। शिर पर जटा और वस्त्र गेरुश्रा रखते हैं। अपने को शैव कहते हैं। अपने मूत्रेन्द्रिय को नश को तोड डालते हैं। और उस में (मूत्रेन्द्रिय में ) एक पौतल को सिकडी बाँधे रहते हैं। अपनी चमत्कारी से सूखी जटा में से पानी निकाल देते हैं, और कहते हैं कि गङ्गा-जल है॥ खेवरा, सेवरा-हौ के एक भेद है, (जैसे गोसार्चाओं में रूखड, सूखड, भूखड, निरञ्जनी, इत्यादि भेद हैं )। हाथ में खप्पड - a - -