पृष्ठ:पदुमावति.djvu/९५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३०-३१] सुधाकर-चन्द्रिका। 39 लिये रहते हैं, और, गोरख-नाथियों के ऐसा, मद्य को सब के सामने दूध बना कर पो जाते हैं। खाली हाथ से केवल हथेलियों को मल मल कर चना, गोह इत्यादि निकास कर लोगों को दिखलाते हैं ॥ वान = वान-प्रस्थ, जो स्त्री-पुरुष साथ वन में जा कर तपस्या करते हैं, अर्थात् जो ब्राह्मण विद्या पढने के अनन्तर, विवाह कर, फिर स्त्री के साथ वन में रहता है। दूस का वर्णन मनु ने मनु-स्मृति में किया है ॥ सिधि-साधक = सिद्धि-साधक = अष्ट सिद्धि के साधने-वाले ॥ अउधूत = अवधूत, जो संसार के व्यवहार से अलग हो जाय । परमहंसों के ऐसा, प्रायः अवधूत भी मौन रहता है, और धूर लपेटे रहता है। गोरख-नाथ को लोग सच्चा अवधूत कहते हैं ॥ श्रातम-भूत = श्रात्म-भूत = अपना भूत, अर्थात् अपने पाञ्चभौतिक (शरीर) को ॥ उस अमरावती में पैर पैर पर कूएँ और बावलौ हैं, (जिन पर विश्राम के लिये ) बैठक सजे हैं, और मौढियाँ लगी हैं ॥ और स्थान स्थान पर जो सब कुण्ड हैं वे सब तीर्थ (तीर्थ-स्वरूप ) हैं, और तिन के नाम भी हैं, अर्थात् राम-कुण्ड, लक्ष्मण-कुण्ड, सौता-कुण्ड, द्रौपदी-कुण्ड, इत्यादि, उन नाम रकबे हुए हैं ॥ चारो तरफ (उन कुण्डौँ के ) मठ और मण्डप बनाये गये हैं, जिन में तपस्वी और जपो सब श्रासन मारे ( आसन को लगाये) है ॥ कोई सु-ऋषीश्वर, कोई सन्यासी, कोई राम-यति, कोई मास-वासी, कोई सु-माहेश्वर, कोई जङ्गम और कोई यति हैं। कोई एक देवी (वाम-देवी) को परखता है ( परीक्षा करता है), अर्थात् वामोपासना में प्रवृत्त है, और कोई सती देवी (दक्षिण-देवी) को परखता है, अर्थात् शक्ति की उपासना करता है | कोई ब्रह्मचर्य पथ में लगे हैं। कोई सुन्दर दिगम्बर हैं, जो नङ्गे होने पर भी अच्छे लगते हैं (आकहिँ) ॥ कोई सन्त, कोई सिद्ध, कोई योगी हैं। और कोई वियोगी (प्रेमौ) निरास पथ (नैराग्य मार्ग= प्रेम-मार्ग) में बैठा है सेवरा, खेवरा, वान (वान-प्रस्थ ), सिद्धि-साधक, और अवधूत, सब श्रासन मार कर बैठे हैं, और सब अपने शरीर को जराते हैं ॥ ३० ॥ = चउपाई। मानसरोदक देखे काहा । भरा समुद जल अति अउगाहा ॥ पानि मोति असि निरमर ताव। अंबित आनि कपूर सु-बार ॥ लंक-दीप कइ सिला अनाई। बाँधा सरबर घाट बनाई ॥