पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/११०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

५३. परमार्थसोपान 1 Part 1 Ch. 2 11. THE LAMP OF JNANA. चौपाई :- सात्विक श्रद्धा धेनु सुहाई । जो हरिकृपा हृदय बसि आई || जप तप व्रत जम नियम अपारा । जे श्रुति कह सुभ धर्म अचारा ॥ तेइ तृण हरित चरै जब गाई | भाव बच्छ सिसु पाइ पन्हाई ॥ परम धरममय पय दुहि भाई । अवटै अनल अकाम बनाई || तोप मरुत तव छमा जुड़ावै । धृति सम जावनु दही जमावै ॥ मुदिता मथै विचार मथानी । दम अधार रजु सत्य सुवानी ॥ तब मथि काढ़ि लेइ नवनीता । विमल विराग सुभग सुपुनीता ॥ ( Contd. on p. 34 )