पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/१११

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Pada 11] Moral Preparation ५३ (११) अनुवाद. सात्विक श्रद्धा रूपी सुन्दर धेनु जब हरि की कृपा से हृदय में आ बसती है, तब अपार जप, तप, व्रत, यम, नियम और जो कुछ शुभ धर्म और आचार श्रुतियों ने कहे हैं, उस हरित तृण को वह चरती है और भावरूपी छोटे बछड़े को पाकर पन्हाती है । है भाई, उस गाय से परम धर्म - मय दूध दुहकर अकामरूपी अनल पर अच्छी तरह औटावे । जब तोपरूपी मरुत चले, क्षमा ठण्डा करे । फिर धृतिरूपी जामन छोड़कर दही जमावे । दम को आधार और सत्य सुवाणी को रज्जु बनाकर विचार रूपी मथानी से मुदिता ( उस दही ) को मथे । मथकर विमल सुभग सुपुनीत वैराग्य रूपी नवनीत निकाल ले । (Contd. on p. 55). .