पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/१२१

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Pada 14] Moral Preparation. ६३ (१४) अनुवाद. ऊधव, हमको योग न सिखाओ । जिस उपदेश से हम को हरि मिलें, वही व्रत, नियम बताओ । मुक्ति अपने घर बैठी रहे । निर्गुण सुनते ही हम दुख पाती हैं । जिस सिर के केशों में भर भर कर फूल पिरोए, उसी पर भस्म किस प्रकार चढावें ? जान जान कर हम सब मग्न हो गई है; हमको आत्म-दर्शन दो । सूरदास कहते हैं कि हे ऊधव ! क्या नवोनिधि (कृष्ण) फिर इस व्रज में आयेंगे ?