पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/१३४

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tea परमार्थसोपान [ Part I Ch. 3 5. GOD AS INSPIRING DIFFERENT EMOTIONS IN DIFFERENT MEN. चौपाई :-- जिन्हकै रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी ॥ देखहिं भूप महा-रनधीरा, मनहुँ वीर रस धरे सरीरा ॥ डरे कुटिल नृप प्रभुहिं निहारी मनहुँ भयानक मूरति भारी । रहे असुर छल छोनिप बेखा तिन्ह प्रभु प्रगट काल सम देखा || दोहा:- नारि त्रिलोकहिं हरपि हिय, निज निज रुचि अनुरूप । जनु सोहत शृंगार धरि, मूरति परम अनूप ॥ चौपाई :- विदुपन प्रभु विराटमय देखा बहुमुख कर पग लोचन सीसा ॥ सहित विदेह बिलोकहिं रानी । सिसुसम प्रीति न जाइ बखानी ॥ ( Contd. on p. 78 )