पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/१४६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

८८ परमार्थसोपान [Part Î Ch. 3 10 RAIDAS ON MUTUAL LOVE ONLY ON MUTUAL INSPECTION. नरहरि चञ्चल है मति मोरी कैसे भगति करूं मैं तोरी ॥१॥ तू मोहि देखे हैं। तोहि देखूँ, प्रीति परस्पर होई | तू मोहि देखे, तोहि न देखें, यह मति सत्र बुधि खोई ॥२॥ सब घट अन्तर रमखि निरन्तर, मैं देखत नहिं जाना । गुन सब तोर मोर सब औगुन, कृत उपकार न माना 11311 मैं तैं तोरि मोरि असमभि सौं, कैसे करि निस्तारा | कह रैदास कृष्ण करुणामय, जै जै जगत-अधारा 11811