पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/१४७

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Pada 10] The Relation of God. १ (१०) अनुवाद. 1 हे नरहरि, मेरी मति चंचल है । मैं तुह्मारी भक्ति कैसे करूं ? तू मुझको देखे, और मैं तुझको देखूं, तो परस्पर प्रीति हो सकती है। तू मुझको देखता है, मैं तुझे नहीं देखता, इस मति से बुद्धि सम्पूर्णतया मूढ़ हो गई है । तुम सब घटों के भीतर निरन्तर रमते हो | मैंने देखना नहीं जाना । सब गुण तुलारे हैं और सब अवगुण मेरे हैं । किये हुए उपकारों को मैंने नहीं माना। 'मैं', 'तू', 'मेरा ' और ' तेरा' इस अज्ञान से कैसे उद्धार हो ? रैदास कहते हैं, जगत के आधार करुणामय कृष्ण की जय हो । શું