पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/१५७

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Pada 15] The Relation of God ९९ (१५) अनुवाद. मैं ) घर छोड़ सकती हूँ । वन छोड़ सकती हूँ । नगर नागरिकों को छोड़ सकती हूँ । बंसीवट का तट छोड़ सकती हूं । देह छोड़ सकती हूँ, गेह छोड़ सकती हूँ परन्तु तुझीं कहो, स्नेह कैसे छोड़ सकूँगी ? आज सब राज-कार्य की भी ऐसी ही सजावट करूँगी । लोग पागल हो गये हैं और मुझको पागल कहते हैं । मैं पागल कहने से किसी को भी नहीं 1 रोकूँगी । कहने और सुनने वाले दोनों को छोड़ दूँगी । बाप और भैया को छोड़ेंगी । हे दई । मैया को भी छोड़ दूँगी किन्तु, कन्हैया को नहीं छोडूंगी ।