पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/१६२

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१०४ परमार्थसोपान [ Part I Ch. 3 (Contd. from p. 102) जब प्राण कण्ठ आवे, कोइ रोग ना सतावे || आप हि दरस दिखावे, तब प्राण तन से निकले ॥ ४ ॥ दुनिया है अपनी गज, बहिरो कि यही अर्जी ॥ जब हो तुम्हारी मर्जी, तब प्राण तन से निकले ॥ ५ ॥