पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/१६९

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Pada 3] Pilgrimage. १११ (३) अनुवाद. -, सद्गुरु या सन्त वही कहलाता है, जो अलख को आँखों से लखावे | जब अन्तर में उपदेश दृढ़ करे तो वह डोलता हुआ भी न डिगे, बोलता हुआ भी न भूले । जो प्राण प्रधान क्रिया से भिन्न सहज समाधि सिखाता है, जो न द्वार रूँधे न पवन रोके और न अनाहत में फँसावे । यह मन संसार में जब कभी और जहाँ कहीं भी जावे, उसको परमात्मा का दर्शन करावे । जो ऐसी युक्ति बतावे कि कर्म करते हुए भी निष्कर्म रहा जाय, जो सदा प्रसन्न रहे, मन में त्रास न लावे और भोग में भी योग जागृत रक्खे | (Contd. on p. 113)