पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/१७०

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११२ परमार्थसोपान [ Part i Ch. 4 (Contd. from p. 110). धरती त्यागि अकासहुँ त्यागै, अधर मड़ैया छावे । सुन्न सिखर की सार सिला पर, आसन अचल जमात्रै ॥ ४ ॥ भीतर रहा सो बाहिर देखे, दूजा दृष्टि न आवै । कहत कबीर बसावे हंसा, आवागमन मिटावै । ५॥ :