पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/१७५

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Pada 5] Pilgrimage. ૨૨૭ (५) अनुवाद । नाम और रूप दोनों ईश की उपाधियां हैं। दोनों अकथ और अनादि हैं | अच्छी समझ वाले ही इनको साध सकते हैं | ( इनमें से ) "कौन बड़ा, कौन छोटा" यह कहना अपराध है । साधु पुरुष इनका गुण भेद सुनकर ( अन्तर में ) समझ लेंगे | नाम के जाने बिना रूप-विशेष करतल-गत होने पर भी पहिचान नहीं पड़ता । रूप के देखे बिना ही नाम को स्मरण करने से ईश्वर अधिक स्नेह से हृदय में आता है। नाम और रूप की गति एक अकथनीय कहानी है । वह समझने में सुखद है, पर उसका वर्णन संपूर्णतया नहीं किया जा सकता है | नाम निर्गुण और सगुण के बीच एक चतुर सुसाक्षी, दुभाषी और प्रबोधक है ।