पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/१७८

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१२० परमार्थ सोपान [ Part I Ch. 4 7. ON INTERNAL MEDITATION BY MEANS OF THE NAME. अजर अमर इक नाम है, सुमिरन जो आवै विन ही मुख के जप करो, नहिं जीभ डलावो । उलटि सुरत ऊपर करो, नैनन दरसावो जाय हंस पच्छिम दिसा, खिरकी खुलवावो । तिरवेनी के घाट पर, हंसा नहवावो पानी पवन कि गम नहीं, वोहि लोक मँजावो । ॥ टेक ॥ 11 3 11 ॥ २ ॥ ताही विच इक रूप है, वोही ध्यान लगावो ॥३॥ जिमीं असमान वहां नहीं, वो अजर कहावै । कहै कबीर सोइ साथ जन, वा लोक मँझावै ॥ ४ ॥