पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/१९३

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Pada 13] Pilgrimage. १३५ (१३) अनुवाद. अगर मिलने का शौक़ है, तो प्रतिश्वास ईश्वर पर लौ लगाते जाओ । अहंकार को जलाकर उसकी भस्म शरीर पर लगाओ, नमाज़ की दरी को फाड़ दो । जप माला को तोड़ दो । किताबें पानी में डालो । ईश्वर के दूतों का हाथ पकड़ो और उनका दास कहलाते जाओ । भूखे न मरो । रोज़ा मत रक्खो । मस्जिद को न जाओ । नमाज़ में सिर मत टेको । कलन्दरों के शाह की आज्ञा है कि " मैं ईश्वर हूँ " ऐसा कहते जाओ । मस्त हुआ मन्सूर कहता है कि मैंने ईश्वर को दिल में पहचाना है । वही मस्तों की मधुशाला है । उसी के बीच आते जाओ ।